Thursday, January 21, 2010
सही ढंग से कही बात, सही निशाने पर करती है वार
बात सिर्फ बोलने की नहीं होती। बोलते तो सभी हैं, लेकिन किसी के बोलने की कला उसे दूसरों के दिलों में खास जगह दिला सकती है, तो किसी की बिना बात की बकबक किसी के पल्ले नहीं पड़ती। मार्टिन लूथर किंग, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और बराक ओबामा ने अपनी वाक्पटुता से ही इतिहास का रूख मोड़ दिया। राजधानी में वाद-विवाद की कई स्पर्धाओं में भाग ले चुके रजत शाह बताते हैं कि बोलने की शैली बहुत मायने रखती है। अगर आप तथ्यों से परिचित हैं, लेकिन अपनी बात आपने सही तरीके से पेश नहीं कर पाते तो आपकी जानकारी निरर्थक साबित हो सकती है। आपको अपनी बात सही तरीके से रखना आना चाहिए। वे कहते हैं कि साक्षात्कार हो या साधारण वाद-विवाद की स्पर्धा, किसी भी बात के सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष को प्रभावशाली तरीके से पेश करने पर जीत तय होती है। बोलते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि हम अपने विषय से भटकें नहीं। पश्चिमी देशों में 22 जनवरी को 'स्पीच एंड सक्सीड डे' के रूप में मनाया जाता है। हालांकि इसकी शुरुआत कब और कैसे हुई, इस बारे में आधिकारिक तथ्य नहीं मिलते। अधिवक्ता ए के उपाध्याय कहते हैं कि हमारे पेशे में बोलने की शैली बहुत महत्व रखती है। हमारा प्रतिद्वंद्वी हमारे सामने दलील पेश करता है और हमें अपने मुवक्किल की खातिर उसकी दलीलों को प्रभावशाली तरीके से काटना पड़ता है। उपाध्याय ने कहा कि बहस लंबी चलती है और इसमें हमें पूरा ध्यान विषय पर ही केंद्रित रखना होता है। हार जीत हमारे लिए महत्व नहीं रखती। मुवक्किल के लिए प्रतिबद्धता हमें अपनी वाक्कला से ही साबित करनी होती है। शाह उदाहरण देते हैं कि मार्टिन लूथर ने अपने भाषणों से अमेरिका में नई क्रांति का सूत्रपात किया था। महात्मा गांधी के भाषणों के ओज ने सदियों से गुलामी की बेडि़यों में जकडे़ भारत के लोगों में स्वाधीनता पाने का जोश भरा। नेताजी सुभाषचंद्र बोस के भाषणों ने लोगों को प्रेरित किया कि उन्हें हर हाल में आजादी हासिल करना है। प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का 14 अगस्त 1947 की रात को रेडियो पर दिया गया भाषण ट्रिस्ट विद डेस्टिनी इतिहास के सर्वश्रेष्ठ भाषणों में गिना जाता है। उस भाषण में स्वतंत्र भारत के सामने खड़ी चुनौतियों के बेहद संजीदा जिक्र जैसी मिसाल मिलना बहुत मुश्किल है। शाह के अनुसार, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई वाक्कला में महारथ रखते हैं। मेगास्टार अमिताभच्बच्चन की बोलने की शैली लाजवाब है। उपाध्याय कहते हैं कि स्कूल कालेज में भी वही प्राध्यापक अपने विद्यार्थियों के बीच लोकप्रिय हो पाते हैं जो अपनी बात विद्यार्थियों कोच्अच्छी तरह समझा सकते हैं। समझाने के पीछे वाक्कला की ही भूमिका होती है। वे कहते हैं कि भाषण शैली व्यक्तित्व, समर्पण और त्याग के सिद्धांतों पर चलने से निखरती है। उपाध्याय ने अमेरिका के इतिहास में नया अध्याय जोड़ने के प्रेरक बने ओबामा के सिर्फ तीन शब्दों 'यस, वी कैन' का जिक्र करते हुए कहा कि ओबामा के इन तीन अल्फाज ने अमेरिकी जनता को मोह लिया और नया इतिहास लिखने का जज्बा और ताकत दी।
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