Sunday, June 27, 2010

अब पुरुषों के लिए गर्भनिरोधक गोली...


परिवार नियोजन की जिम्मेदारी अब केवल महिलाओं के कंधों पर नहीं रहेगी। वैज्ञानिकों ने महिलाओं के गर्भनिरोधक के विकल्प के रूप में पुरुषों के लिए ऐसी ही एक गर्भनिरोधक गोली विकसित करने का दावा किया है।
अभी तक पुरुषों के लिए यह गोली विकसित करने के सभी प्रयास विफल रहे थे और वैज्ञानिक पुरुषों के लिए एक हार्मोन आधारित गर्भनिरोधक गोली तैयार करने में जुटे थे जिसे डाक्टर की सलाह पर लिया जा सके।
हालांकि इस गोली का सेवन करने वालों ने इसके इस्तेमाल से अवसाद और यौनच्इच्छा में कमी जैसे दुष्प्रभावों की शिकायत की थी।
अब इजरायली वैज्ञानिकों की एक टीम ने शुक्राणुओं की जैव रसायन मशीनरी को अवरूद्ध कर एक गोली बनाई है। वास्तव में इसमें यह फार्मूला अपनाया गया है जिसके तहत शुक्राणुओं के उन महत्वपूर्ण प्रोटीन को हटा दिया गया है जो किसी महिला के गर्भधारण करने के लिए जरूरी होते हैं। डेली एक्सप्रेस में यह जानकारी दी गई है।
गोली बनाने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि यह गोली तीन महीने में केवल एक बार लेनी होगी और यह गर्भ धारण होने से रोकने में सौ फीसदी प्रभावी है और इसका कोई दुष्प्रभाव नहंी है।
बार एलन यूनिवर्सिटी के प्रमुख वैज्ञानिक हैइम ब्रेटबर्ट के हवाले से ब्रिटिश टेबलायड ने लिखा है कि जो गोली हम विकसित कर रहे हैं, यह पुरुषों को यौन आनंद देती है और वह भी बिना किसी परिणाम के।
सर्वेक्षणों में पाया गया था कि यदि हर रोज गर्भनिरोधक गोली लेनी हो तो वे महिलाएं परिवार नियोजन की जिम्मेदारी देने के मामले में पुरुषों पर भरोसा नहीं करेंगी, लेकिन प्रोफेसर ब्रेटबर्ट ने साथ ही कहा कि मैं समझता हूं कि अधिकतर महिलाएं महीने में एक बार या तीन महीने में एक बार गोली लेने के मामले में अपने साथी पुरुष पर भरोसा करेंगी।

Friday, June 25, 2010

रेड वाइन से ठीक रहती है आंख


रेड वाइन अगर सीमित मात्रा में पी जाए तो इसके कई फायदे हैं। भारतीय मूल के शोधकर्ता ने फायदों की सूची में एक नई बात को जोड़ते हुए कहा है कि रेड वाइन के सेवन से आंख की रोशनी बरकरार रहती है।
डा. राजेन्द्र आप्टे के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय शोध दल ने यह पाया कि अंगूर और इसके जैसे अन्य फलों के रस जिससे कि रेड वाइन का निर्माण होता है, में वे तत्व मौजूद होते है जिससे आंखों की कोशिकाओं में पाए जाने वाले रक्त की नलिकाओं में बढती उम्र के कारण होने वाली क्षति को भरने की क्षमता होती है।
द डेली टेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार इसमें रेसविरेट्राल नाम का यौगिक पाया जाता है जो बढ़ती उम्र में होने वाले कोशिकाओं के नुकसान को रोककर आंखों की रोशनी को बढ़ाता है।
यह यौगिक उम्र को घटाने में [एंटी ऐजिंग] और कैंसर से लड़ने के लिए उपयुक्त होता है और यह माना जाता है कि यह क्षतिग्रस्त रक्त कोशिकाएं और उत्परिवर्तित [म्यूटेशन नाम की क्रिया जो कोशिकाओं की संरचना को परिवर्तित कर देती है] कोशिकाओं को ठीक करने में मदद करता है।
उत्परिवर्तन और बढ़ती उम्र के कारण कैंसर, हृदय रोग और अंाखों से संबंधित बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। डा. आप्टे ने कहा कि यह अध्ययन एक व्यापक प्रभाव को पैदा करेगा जिससे हमें यह जानने में मदद मिलेगी कि रेसविरेट्राल हार्मोन कैसे काम करता है और यह किस प्रकार से आंखों के अंदर और बाहर की कोशिकाओं से जुड़कर उसे प्रभावित करता है।
रेसविरेट्राल एक प्रकार का प्राकृतिक यौगिक है जो कई पौधों में जीवाणु और कवक से होने वाले संक्रमण से बचने के लिए निकलता है। यह अंगूर में भारी मात्रा में पाया जाता है।
इससे पहले के शोध में इस बात को प्रमाणित किया जा चुका है कि रेसविरेट्राल हार्मोन एंटी एजिंग और कैंसर प्रतिरोधी क्षमता को विकसित करता है।
यह शोध 'द अमेरिकन जर्नल आफ पैथोलाजी' में प्रकाशित हुआ है।

जम्हाई लेना 'यौन आकर्षण का संकेत'


अगली बार यदि आप दूसरों के सामने जम्हाई लेते हैं तो जरा सावधान रहिए। एक नए अध्ययन में खुलासा हुआ है कि जम्हाई या उबासी लेना यौन आकर्षण का संकेत है। अब तक माना जाता था कि यह सोने की इच्छा के प्रकटीकरण का माध्यम है।
पेरिस में आयोजित पहले अंतरराष्ट्रीय जम्हाई सम्मेलन में वैज्ञानिकों ने दावा किया कि इंसान की यह क्रिया वास्तव में रुचि, दबाव और यहां तक कि सेक्स की चाहत सहित अन्य भावनाओं को प्रकट कर सकती है।
'द टेलीग्राफ' की खबर के अनुसार वैज्ञानिक हालांकि अब तक जम्हाई लेने की उस प्रक्रिया के बीच अंतर स्पष्ट नहीं कर पाए जो कामोत्तेजना या कुछ नींद लेने की आवश्यकता को प्रकट करती है।
इस तथ्य के बावजूद कि औसतन हर आदमी अपने जीवनकाल में दो लाख 40 हजार बार उबासी लेता है, इस प्रक्रिया के बारे में अधिकांशत: रहस्य ही बना हुआ है।
वैज्ञानिक अब तक इस बारे में सही-सही नहीं जानते कि हम जम्हाई क्यों लेते हैं, लेकिन इससे अतिरिक्त ऑक्सीजन मिलने की प्रचलित सोच पूरी तरह गलत है।
जम्हाई विज्ञान के विशेषज्ञ माने जाने वाले डच शिक्षाविद वोल्टर स्यूंटजेंस के हवाले से अखबार ने कहा कि हम आदमी को चांद पर भेज सकते हैं, लेकिन हम इन गतिविधियों की मामूली सी भी व्याख्या नहीं कर सकते।
उबासी से कामुकता की धारणा तब पैदा हुई जब स्यूंटजेंस ने यह उल्लेख किया कि बहुत से ऐसे लोगों ने सेक्स विशेषज्ञों से संपर्क किया जिन्होंने सेक्स या यौन संबंधों से पूर्व की क्रिया के दौरान जम्हाई ली।

Wednesday, June 23, 2010

महिलाओं की प्रजनन प्रणाली में होती है गुणवत्ता नियंत्रण व्यवस्था


महिलाओं की प्रजनन प्रणाली में स्वत: ही गुणवत्ता नियंत्रण व्यवस्था होती है जो ऐसे शुक्राणुओं को खारिज कर देती है जिन्हें वह गर्भ धारण करने के लिए अच्छा नहीं पाती।
यूनिवर्सिटी आफ ऐडिलेड की साराह राब‌र्ट्सन के हवाले से एबीसी ने बताया है कि परीक्षणों में पाया गया कि महिलाओं की प्रजनन प्रणाली के भीतर ही कुछ ऐसी व्यवस्था होती है जो यह अनुमान लगाती है कि साथी पुरूष क्या इतना गुणवान है कि उसका गर्भ धारणा किया जाए। उन्होंने बताया कि पूरी प्रक्रिया यह बताती है कि महिला का शरीर खुद इस बात का मूल्यांकन करता है कि क्या गर्भ धारण करने का सही समय आ गया है या कि मौजूदा पुरूष साथी गर्भ धारण करने के लिए सही है?
साराह ने बताया कि कुछ महिलाओं में यह प्रणाली अधिक सक्रिय होती है। ऐसा हो सकता है कि किसी एक साथी के साथ उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ रहा हो। हमें जो कुछ समझ में आया है, वह यह कि गर्भधारण करने की महिलाओं की प्रजनन व्यवस्था में साथी एक महत्वपूर्ण कारक है।
शोधकार्य की अगुवा साराह ने कहा कि कुछ महिलाओं और पुरूषों की जोड़ी सही नहीं होने पर भी ऐसा होता है। यह भी संभव है कि कुछ महिलाओं की प्रतिरोधक प्रणाली साथी पुरूष के शुक्राणुओं के प्रति सही प्रतिक्रिया नहीं दे रही हो।
इस शोध के शुरूआत में चूहों और सुअरों को शामिल किया गया था, लेकिन साराह ने कहा कि ऐसे संकेत हैं कि इंसानी महिलाओं में भी यही प्रक्रिया काम करती है।

Tuesday, June 22, 2010

21वीं सदी में भी विधवाएं हैं उपेक्षा की शिकार


रमा देवी को समझ नहीं आता कि एक दिन जिस परिवार ने उन्हें पूरे प्यार और सम्मान से अपनाया था वही परिवार आज उन्हें मनहूस क्यों मानता है और शादी-ब्याह, मुंडन जैसे शुभ अवसरों पर उन्हें शामिल क्यों नहीं किया जाता।
पश्चिमी दिल्ली के एक गांव की 72 वर्षीय रमा देवी पति के लिए पति के निधन के सदमे से उबर पाना बहुत मुश्किल था और उनकी मुश्किलें उस वक्त और बढ़ गईं, जब उनका अपना परिवार उन्हें मनहूस मानने लगा। उपेक्षा की इस मार ने उनकी पीड़ा को कई गुना बढ़ा दिया।
शिक्षा के प्रसार और आधुनिकता की बयार के बावजूद 21वीं सदी में भी विधवाओं को अशुभ माना जाता है। लोग उन्हें न केवल शादी-ब्याह जैसे अवसरों पर ही दूर नहीं रखते हैं, बल्कि उन्हें परिवार पर बोझ मानते हैं।
हालांकि विधवाओं को भी संपत्ति में हिस्सा पाने का कानूनी हक है, लेकिन व्यवहार में ऐसा बहुत कम होता है और उन्हें संपत्ति के हक से बेदखल कर दिया जाता है। खासकर जब पति के भाइयों में जमीन या संपत्ति के लिए विवाद होता है तो विधवा के हक को नजरअंदाज कर दिया जाता है।
एक अनुमान के अनुसार देश में तीन करोड़ 30 लाख विधवाएं हैं। देश में हर चौथे परिवार में एक विधवा हैं और देश की इतनी बड़ी आबादी को अपनेपन के अभाव में घोर उपेक्षा में अपने जीवन के दिन काटने पड़ रहे हैं।
देश में विधवाओं खासकर वृद्ध विधवाओं को गरीबी, भूखमरी, खराब स्वास्थ्य देखभाल, ज्यादा शारीरिक श्रम जैसी समस्याओं से दो चार होना पड़ता है। शहरी एवं ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में करीब 45 प्रतिशत वृद्ध विधवाएं जटिल स्वास्थ्य समस्याओं से घिरी हैं।
विधवाओं में करीब आधी कम उम्र की विधवाएं हैं जो बालपन में ही अधिक उम्र के पुरूष से ब्याह दिए जाने के कारण वैध्वय का शिकार हो जाती हैं।
देश में भले ही ब्रिटिश काल में ही सती प्रथा समाप्त हो गई और विधवा पुनर्विवाह कानून भी बन गया, लेकिन हकीकत यह है कि कई सवर्ण जातियों में विधवाओं का पुनर्विवाह नहीं होता। उन्हें सादगी के नाम पर ताउम्र जीवन के रंगों से दूर रहना पड़ता है। सबसे दुर्भाग्य की बात तो यह है कि इन्हें इनके पति की मौत के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है।
कई परिवार विधवाओं को मोक्ष के नाम पर वृंदावन या बनारस की तंग गलियों में छोड़ आते हैं, लेकिन दरअसल ऐसा उनसे पिंड छुड़ाने के लिए किया जाता है। वहां उन्हें जीवन की जरूरतें पूरी करने के लिए भीख तक मांगना पड़ता है।
राष्ट्रीय महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष मोहिनी गिरी मानती हैं कि बाल विवाह की वजह से महिलाएं बड़ी संख्या में विधवा हो जाती हैं। कुछ पुरातन परंपराओं कारण विधवाओं का दूसरा विवाह नहीं किया जाता और उनसे पिंड छुड़ाने के लिए उन्हें किसी धार्मिक शहर में छोड़ दिया जाता है।
एक अनुमान के अनुसार वृंदावन में करीब 15 हजार विधवाएं हैं। इसी तरह बनारस में बहुत बड़ी संख्या में विधवाएं हैं। वहां उन्हें समुचित खाना पीना नहीं मिलता और कई बार उनका यौनशोषण होता है। कई महिलाओं को जीवन की जरूरतें पूरी करने के लिए लाचार होकर यौनधंधे में उतरना पड़ता है। विधवाओं की स्थिति पर दीपा मेहता की फिल्म 'वाटर' बहुत चर्चित रही।

Sunday, June 20, 2010

अब झूठे बहाने बनाने में मदद करेगा आपका मोबाइल



अगर आप अपने बॉस या किसी दोस्त के साथ बैठे हैं और उनसे पीछा छुड़ाना चाहते हैं तो परेशान होने की जरूरत नहीं है। इसके लिए आपको बस एक झूठ बोलना है और इस झूठ में मोबाइल आपकी मदद करेगा।एक मोबाइल कंपनी के कुछ हैंडसेटों में 'फेक कॉल' [फर्जी कॉल] नाम से एक सेवा शुरू की गई है जिसकी मदद से आप आसानी से झूठा बहाना बना सकते हैं।


मान लीजिए, आपकी किसी व्यक्ति के साथ मीटिंग है और आप चाहते हैं कि यह मीटिंग ज्यादा देर तक नहीं चले तो आप इस 'फेक कॉल' को चुपचाप एक्टीवेट कर सकते हैं। एक्टीवेट होने के कुछ देर में ही आपका मोबाइल बजने लगेगा और वहां मौजूद व्यक्तियों को लगेगा कि आपके पास किसी का फोन आया है।


आप इस फर्जी कॉल के जरिए लोगों से कह सकते हैं कि आपको जरूरी काम से जाना है। खास बात यह है कि यह कॉल बिना काटे असीमित समय तक जारी रह सकती है।


इस मोबाइल कंपनी के तकनीकी विभाग के एक उच्च अधिकारी ने बताया कि 'फेक कॉल' की इस सुविधा से लोगों को अनचाहे व्यक्ति के साथ बातचीत से बचने में मदद मिलेगी। इस अधिकारी ने बताया कि 'फेक कॉल' की सुविधा का प्रयोग आप किसी से बचने के लिए कर सकते हैं। एक्टीवेट होने के बाद कुछ पलों में ही आपका मोबाइल बजने लगेगा। लोगों को लगेगा कि किसी का फोन आया है और आप कोई बहाना बनाकर वहां से निकल सकते हैं।


इस सुविधा के तहत अगर आपने पहले से अपनी या किसी और की आवाज मोबाइल में सेव कर रखी है तो 'फेक कॉल' के दौरान वही आवाज आपको कॉल के दौरान सुनाई देगी। आप अधिकतम 10 सेकेंड पहले से इस सुविधा को एक्टीवेट कर सकते हैं।वैसे अगर आप पहले से 'फेक कॉल' एक्टीवेट करना भूल गए और आप किसी से बात करते समय चाहते हैं कि आपके मोबाइल पर यह फर्जी काल आए तो यह भी संभव है। इसके लिए आपको चुपचाप जेब में हाथ डालकर इस हैंडसेट के दो बटन दबाने होंगे जिसके बाद पल भर में ही आपका मोबाइल बज उठेगा।

Thursday, June 17, 2010

पुरुषों के शुक्राणु विकास के लिए कौन है जिम्मेवार


वैज्ञानिकों ने पहली बार ऐसे लक्षणों की पहचान का दावा किया है जो बढ़ती उम्र के कुछ पुरुषों में महिलाओं की ही तरह प्रजनन क्षमता के ह्रास अथवा रजोनिवृत्ति के लिए जिम्मेदार होते हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार पुरुषों और महिलाओं की रजोनिवृत्ति में मुख्य अंतर यह है कि महिलाओं में जहां सभी को इस प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है वहीं पुरुषों में अधिक उम्र के केवल दो प्रतिशत पुरुष ही इससे दो चार होते हैं, जिसे आम तौर पर खराब स्वास्थ्य और मोटापे से जोड़कर देखा जाता है।
मैनचेस्टर विवि और लंदन के इंपीरियल कालेज और लंदन विश्वविद्यालय के दल ने आठ यूरोपीय देशों से नमूने एकत्र कर इस प्रयोग को अंजाम दिया। इसमें उन्होंने 40 से 79 साल के पुरुषों में टेस्टोरान [मेल सेक्स हार्मोन जो शुक्राणु बनने और प्रजनन के लिए उतरदाई होता है] के स्तर का अध्ययन कर उक्त निष्कर्ष निकाला।
वैज्ञानिकों के दल ने लोगों से उनके शारीरिक, भौतिक और मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य और उससे जुड़े कुछ सवाल पूछे और पाया कि 32 लोगों में से केवल नौ लोगों में उक्त लक्षण टेस्टोरान का स्तर सामान्य से कम होने की वजह से थे। इनमें तीन यौन लक्षण सबसे महत्वपूर्ण रहे।
पहला सुबह के समय कामोत्तेजना में कमी, दूसरा यौन विचारों में कमी और तीसरा उत्थानशीलता में कमी शामिल
दल ने यह निष्कर्ष निकाला कि यदि किसी पुरुष में यौन प्रवृतियों के यह तीन लक्षण और टेस्टोरान हार्मोन के स्तर में कमी पाई जाए तो इसका मतलब है कि उक्त पुरुष रजोनिवृत्ति की प्रक्रिया से गुजर रहा है, लेकिन उस व्यक्ति में इसके अलावा कुछ गैर यौन लक्षण भी पाए जा सकते हैं।
इसमें उन्होंने तीन शारीरिक लक्षणों को चिन्हित किया, जिसमें दौड़ने या वजन उठाने जैसे भारी काम कर पाने में अक्षमता, एक किमी से अधिक की दूरी तक न चल पाना और झुकने और बैठने में परेशानी होना शामिल है। इसके अलावा मनोवैज्ञानिक तौर पर जो लक्षण सामने आए उनमें, ऊर्जा की कमी, उदासी और कमजोरी शामिल हैं।
यह शोध लंदन की शोध पत्रिका न्यू इंगलैंड जर्नल आफ मेडिसिन में प्रकाशित हुआ है।

Wednesday, June 16, 2010

यहां पर लगती है अमर-प्रेम फरियाद


भारत-पाकिस्तान की सरहद पर बिंजौर गांव में एक मजार पर दिन ढलते ही कव्वाली की धुनों के बीच सैकड़ों युगल अपने प्रेम के अमर होने की दुआ मांगते देखे जा सकते हैं। यहां हर साल एक मेला लगता है जिसमें आने वालों को पूरा यकीन है कि उनकी फरियाद जरूर कुबूल होगी।
लैला-मजनू की दास्तान पीढि़यों से सुनी और सुनाई जा रही है। कहा जाता है कि लैला और मजनू एक दूजे से बेपनाह मोहब्बत करते थे, लेकिन उन्हें जबरन जुदा कर दिया गया था। यहां के लोग इस मजार को लैला-मजनू की मजार कहते हैं। हर साल 15 जून को यहां सैकड़ों की तादाद में लोग पहुंचते हैं, क्योंकि यहां इस दौरान मेला लगता है।
यह मजार राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले में है। पाकिस्तान की सीमा से यह महज दो किलोमीटर की दूरी पर है। इस साल भी यहां सैकड़ों की संख्या में विवाहित और प्रेमी जोड़े यहां पहुंचे। इस बार मेला मंगलवार को आरंभ हुआ और बुधवार तक चला।
यद्यपि इतिहासकार लैला-मजनू के अस्तित्व से इंकार करते हैं। वे इन दोनों को काल्पनिक चरित्र करार देते हैं। परंतु इस मजार पर आने वालों को इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता। वे तो बस फरियाद लिए यहां चले आते हैं।
स्थानीय निवासी गौरव कालरा कहते हैं कि हर साल यहां सैकड़ों जोड़े लैला-मजनू का अशीर्वाद लेने आते हैं। मैं नहीं जानता कि लैला-मजनू थे या नहीं, लेकिन पिछले 10-15 वर्षो में यहां आने वालों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है।
यहां आने वाले सभी मजहबों के लोग होते हैं। कालरा ने बताया कि सिर्फ हिंदू और मुसलमान ही नहीं बल्कि सिख एवं ईसाई भी इस मेले में आते हैं।
नवविवाहिता युवती रेखा ने कहा कि हमने सुना है कि यह प्रेम करने वालों का मक्का है और यहां खुशहाल शादीशुदा जिंदगी के लिए यहां एक बार जरूर आना चाहिए। इसलिए मैं भी अपने पति के साथ यहां आई हूं।
इस मजार की लोकप्रियता और उत्सुकता को देखते हुए सरकार इस गांव में सुविधाएं बढ़ाने पर विचार कर रही है।

Sunday, June 6, 2010

...अब आ गई सिगरेट छुड़ाने वाली मशीन


काफी जद्दोजहद के बाद भी अगर आप सिगरेट छोड़ने में नाकाम रहे हैं तो घबड़ाने की कोई बात नहीं, क्योंकि दिल्ली के दो सरकारी अस्पतालों और इनके तंबाकू से निजात दिलाने वाली क्लिनिकों में कंपनयुक्त एक्यूप्रेशर तकनीकी की जल्द ही शुरुआत हो सकती है।
जर्मन निर्मित बायो-रेसोरेंस [कंपन चिकित्सा] उपकरण, शरीर के अंदर के विद्युतीय तरंगों के साथ मिल कर आपमें निकोटीन लेने की च्च्छा को कम करता है।
राज्य सरकार द्वारा संचालित इंस्टिट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहैवियर एंड अलाइड साइंस के निदेशक डाक्टर नीमेश देसाई ने बताया कि बायो रेसोरेंस यंत्र पहली सिगरेट पीने के बाद आपमें अगली सिगरेट पीने कीच्इच्छा को समाप्त कर देता है। सिगरेट छुड़ाने का यह उपचार न तो नुकसानदायक है और न ही पीड़ादायक है। इस चिकित्सा पद्धति में किसी प्रकार की कोई दवा भी नहीं लेनी पड़ती।
सिगरेट पीने कीच्इच्छा रखने का केवल मानसिक संबंध नहीं है, बल्कि इसके पीछे कुछ जैविक कारण भी हैं।
देसाई ने बताया कि आप के हाथ में बोयो रसोरेंस यंत्र जब कंपन करता है तो उसका असर आपके तंत्रिका आवेगों पर पड़ता है जिसके परिणामस्वरूप आपमें सिगरेट पीने कच् इच्छा कम हो जाती है।

Friday, June 4, 2010

अस्थमा को दावत देता है बर्गर!


यदि आप बर्गर खाने के शौकीन हैं तो संभल जाइए। एक नए शोध में पता चला है कि जो बच्चे जंक फूड पसंद करते हैं और सप्ताह में कम से कम तीन बर्गर खाते हैं, वे अस्थमा जैसी बीमारी को दावत दे रहे हैं।
वेबसाइट 'एक्सप्रेस डॉट को डॉट यूके' की ओर से जारी की गई एक रिपोर्ट में बताया गया है कि शोधकर्ताओं ने इसके अध्ययन के लिए 20 देशों के 50,000 बच्चों को शामिल किया। शोध में पाया गया है बर्गर खाने वाले बच्चों को अस्थमा होने का खतरा अधिक होता है।
इस शोध में पाया गया कि ऐसे युवा जो फल, सब्जियों और मछली का सेवन करते हैं उनमें बीमारी से प्रभावित होने का खतरा कम रहता है।

Wednesday, June 2, 2010

दिलों को जीतिए मगर प्यार से


कहा जाता है कि प्यार से इन्सान दुनिया जीत सकता है और नफरत अपनों को भी दूर कर देती है। यह बात सुनने में ही नहीं बल्कि यथार्थ में भी अपना करिश्मा दिखाती है।
प्यार शब्द अपने आप में बहुत ही मीठा अहसास लिए होता है जो दोस्तों, दुश्मनों सभी को अच्छा लगता है। नफरत जहां अपनों को दुश्मन बना देती है वहीं प्यार में वह तासीर होती है जो दुश्मन को अपना बनाने का दम रखती है। यही वजह है कि प्यार से हर काम कराया जा सकता है और डांट फटकार, नफरत से केवल दूरियां बनती तथा बढ़ती हैं।
एक मनोविज्ञानी का कहती हैं कि बड़े तो बड़े, बच्चे तक प्यार की भाषा अच्छी तरह समझते हैं। अगर आप बच्चे को लगातार डांटते फटकारते रहेंगे तो बच्चे का आपके साथ जुड़ाव नहीं हो पाएगा, लेकिन बच्चे को भरपूर प्यार दे कर देखें, बच्चा आपके दिल को करीब आ जाएगा। यह बात खुद बच्चे की प्रतिक्रियाओं से ही साबित हो जाएगी।
एक पब्लिक स्कूल की प्राचार्य कहती हैं कि वैसे तो सभी शिक्षक अध्यापन के प्रति समर्पित होते हैं, लेकिन एक बात हमने महसूस किया है कि बच्चे उसी शिक्षक को अधिक पसंद करते हैं जो उन्हें प्यार से पढ़ाएं। ऐसे शिक्षक बच्चों को जो पढ़ाते हैं, उसे बच्चे आसानी से आत्मसात कर लेते हैं, लेकिन शिक्षक अगर डांट फटकार कर बच्चे को पढ़ाते हैं तो दोनों के बीच एक दूरी बन जाती है और बच्चे विषय को समझ नहीं पाते। नतीजा यह होता है कि बच्चे उस विषय पर कम ध्यान देते हैं और उस पर उनकी पकड़ भी कमजोर होती जाती है।
मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि यह सच है कि बच्चों को प्यार से समझाना आसान और उनके लिए ही बेहतर होता है। किसी विषय में बच्चे के कम अंक आने का कारण, उस विषय में बच्चे की दिलचस्पी कम होना है। उस विषय के शिक्षक का व्यवहार भी मायने रखता है। डांटने फटकारने वाला शिक्षक अगर बच्चे को पढ़ाएगा, तो बच्चे के मन में डर बैठ जाएगा। अगर बच्चे को कुछ समझ में न आए, तो वह शिक्षक की डांट के डर से पूछ भी नहीं पाएगा। नतीजा बच्चा उस विषय में कमजोर हो सकता है। इसीलिए बच्चों को प्यार से पढ़ाना चाहिए।
कैंसर जैसी बीमारी से जूझ कर मौत को परे कर चुके एक सेवानिवृत्त वन अधिकारी कहते हैं कि अस्पताल में बार-बार यह अहसास होता था कि कैंसर ने मेरे जीवन के दिन सीमित कर दिए हैं। ऐसे में जब डॉक्टर और नर्स प्यार से हौसला बंधाते थे तो बहुत अच्छा लगता था। आज मैं बिल्कुल ठीक हो चुका हूं, लेकिन उन डॉक्टरों और नर्सो की बहुत याद आती है। अगर वे रूखे ढंग से पेश आते, तो शायद मुझे समय से पहले ही मौत आ चुकी होती।
'लव कांकर्स डे' की शुरूआत कब और कैसे हुई इसकी जानकारी नहीं मिलती है, लेकिन यह दिन प्यार से दिलों को जीतने का मूलमंत्र जरूर देता है।

न करें सुबह के नाश्ते को नजरअंदाज!


यदि आप एसिडिटी, मोटापे की शिकायत से जूझ रहे हैं और आपको किसी काम में ध्यान लगाने में परेशानी हो रही है तो शायद इसकी वजह आपका सुबह का नाश्ता न लेने की आदत है। ब्रेन फूड कहा जाने वाला सुबह का नाश्ता दिनभर का सबसे महत्वपूर्ण आहार है।
ज्यादातर शहरी लोग या तो अपनी व्यस्ततम जीवनशैली की वजह से नाश्ते को नजरअंदाज करते हैं या फिर वे सोचते हैं कि नाश्ता न लेने से छरहरी काया हासिल की जा सकती है। वजह जो भी हो, लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि इससे लोगों में मोटापे की शिकायत हो सकती है।
बत्रा अस्पताल की मुख्य आहार विशेषज्ञ अनीता जटाना ने को बताया कि ऐसा लगता है कि इन दिनों लोगों के पास सुबह के नाश्ते के लिए समय नहीं है। उनके पास पौष्टिक नाश्ता करने की स्वस्थ परंपरा से बचने के सभी कारण हैं।
वह इसे धारणा और जीवनशैली में बदलाव मानती हैं। उनका कहना है कि लोग कई वजहों से सुबह का नाश्ता नहीं करते। इनमें व्यस्तता, रात में देर से भोजन करना, खुद को छरहरा बनाने सहित कई वजहें शामिल हैं। इस तरह से वह अच्छे स्वास्थ्य के लिए जरूरी सुबह के नाश्ते से दूर रहते हैं।
आहार विशेषज्ञों के मुताबिक सुबह का नाश्ता बहुत जरूरी है। वे कहते हैं कि नाश्ता संतुलित होना चाहिए और इसमें कैल्शियम [दूध या दूध से वस्तुएं], प्रोटीन, रेशेदार पदार्थ [अंकुरित अनाज] और एंटीऑक्सीडेंट्स [सेब, स्ट्रॉबेरी, केला, संतरा] और विटामिन होने चाहिए।
मैक्स अस्पताल की मुख्य आहार विशेषज्ञ ऋतिका सामादार कहती हैं कि प्राय: ब्रेन फूड कहे जाने वाले सुबह के नाश्ते का संपूर्ण होना आवश्यक है और इसमें शरीर के लिए जरूरी सभी पोषक तत्व होने चाहिए। शरीर की चयापचय प्रक्रिया के बेहतर होने के लिए सुबह पोषक नाश्ता लेना बहुत जरूरी है।
उनका कहना है कि रात के खाने और सुबह के नाश्ते के बीच 10 से 12 घंटे का अंतराल हो जाता है, जो कि बहुत लंबा समय है। ऐसे में यदि नाश्ता न किया जाए तो यह अंतराल और भी बढ़ जाता है और इस तरह से शरीर की चयापचय प्रक्रिया प्रभावित होती है।

Tuesday, June 1, 2010

टूटे हुए दिलों के डॉक्टर फिक्सइट


न कभी दिल टूटा, न ली चिकित्सा की शिक्षा लेकिन फिर भी हैं 'डॉक्टर फिक्सइट'। टूटे हुए दिलों को जोड़ने का काम करने वाले रंजन वर्धन को उनके चहेते 'डॉक्टर रीहेबिलिटेशन', 'डॉक्टर फील-गुड' और 'डॉक्टर फिक्सइट' कहकर ही पुकारते हैं।
रंजन वर्धन चंडीगढ़ में एक स्नात्कोत्तर कन्या महाविद्यालय में सहायक प्रोफेसर हैं। उन्हें टूटे हुए दिलों को जोड़ने के अद्वितीय क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल है, लेकिन ऐसा सिर्फ उन लोगों के लिए नहीं है जिन्हें प्यार में निराशा हाथ लगती है।
वर्धन ने 1991 में चंडीगढ़ में 'ब्रोकन हार्ट रीहेबिलिटेशन सोसायटी' स्थापित की थी। अब वह एक-दो महीने में टूटे हुए दिलों के लिए समर्पित एक वेबसाइट शुरू करने जा रहे हैं।
वर्धन ने कहा कि 'ब्रोकन हार्ट' केवल प्यार में असफल होने वाले लोगों के लिए नहीं है। यह जिंदगी की ऐसी कोई भी असफलता हो सकती है जो लोगों का दिल तोड़ देती है। वास्तव में जिंदगी के किसी न किसी मोड़ पर हर किसी का दिल टूटता है और हमारी संस्था वहीं मदद करती है।
पेशे से समाजशास्त्री वर्धन ने अपने विचार अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने के लिए 2008 में एक किताब 'कोपिंग विद ब्रोकन हा‌र्ट्स-वल्‌र्ड्स फ‌र्स्ट सेल्फ-हेल्फ बुक फॉर ब्रोकन हा‌र्ट्स' लिखी थी।
वर्धन दावा करते हैं कि मैंने अपने आस-पास ऐसे कई लोगों को देखा जिन्हें या तो जिंदगी में कुछ पाने में असफलता मिली या प्रेम में उनके दिल टूटे, इसी से प्रेरित होकर मैंने 'ब्रोकन हार्ट सोसायटी' बनाई। इन लोगों के लिए किसी ने कुछ नहीं किया था। इसलिए मैंने इस दिशा में काम करना और परामर्श के द्वारा लोगों की मदद करना शुरू कर दिया। यह दुनिया में अपनी तरह की पहली शुरुआत है।
अब इस सोसायटी में 100 सदस्य हैं जो जिस किसी को भी आवश्यकता होती है उसे निजी तौर पर मिलकर या ई-मेल के जरिए परामर्श देते हैं। उन्होंने कहा कि कई लोग परामर्श के लिए हमसे संपर्क करते हैं।
टूटे हुए दिलों के लिए किए गए वर्धन के इस अनोखे प्रयास को 1999 में 'लिम्का बुक ऑफ रिकॉ‌र्ड्स' में भी मान्यता मिली।
वर्धन जून में हार्वर्ड विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र पर एक शोध पत्र प्रस्तुत करने के लिए जा रहे हैं। उनका सपना है कि उन्हें नोबेल पुरस्कार मिले। वे कहते हैं कि मुझे अब तक नोबेल पुरस्कार नहीं मिला है लेकिन नोबेल पुरस्कार हॉल में मेरी एक किताब का लोकार्पण हुआ है। वर्धन ने अब तक पांच किताबें और कई शोध पत्र लिखे हैं।
वर्धन के मुताबिक उन्होंने तीन मई 1977 को चंडीगढ़ में टूटे हुए दिलों के लिए दुनिया का पहला पुनर्वास शिविर आयोजित किया था। उन्होंने तीन मई को 'ब्रोकन हा‌र्ट्स डे' घोषित किया है।

अवसादरोधी दवाओं से गर्भपात का खतरा


दुनिया में अवसादरोधी दवाओं का इस्तेमाल बढ़ने के साथ गर्भपात का खतरा 68 प्रतिशत तक बढ़ गया है। एक नए अध्ययन में पता चला है कि गर्भावस्था के दौरान अवसादरोधी दवाओं का बहुत इस्तेमाल होता है और 3.7 प्रतिशत महिलाएं गर्भावस्था के पहले तीन महीनों के दौरान कभी न कभी इनका उपयोग करती हैं।
इलाज बंद करने पर दोबारा अवसादग्रस्त होने की संभावना रहती है और इससे मां व बच्चे को खतरा हो सकता है। पूर्व में हुए ज्यादातर अध्ययनों में गर्भावस्था के दौरान अवसादरोधी दवाओं के इस्तेमाल और गर्भपात के बीच संबंध पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है। कई अध्ययनों में तो बिल्कुल उलटे परिणाम आए हैं।
मोंट्रियल विश्वविद्यालय [यूएम] के शोधकर्ताओं ने क्यूबेक की ऐसी ही 5,214 महिलाओं पर अध्ययन किया जिनका गर्भावस्था के 20वें सप्ताह में गर्भपात हुआ। शोधकर्ताओं ने इतनी ही संख्या में ऐसी महिलाओं का भी अध्ययन किया, जिनमें गर्भपात नहीं हुआ।
जिन महिलाओं में गर्भपात हुआ उनमें से 284 [पांच प्रतिशत] ने गर्भावस्था के दौरान अवसादरोधी दवाएं ली थीं।
'सिलेक्टिव सीरोटोनिन रीअपटेक इंहिबिटर्स' [एसएसआरआई] खासकर पैरोक्जीटीन और वीनलाफैक्जीन अवसादरोधी दवाओं की प्रतिदिन अधिक मात्रा लेने से गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है।
अवसाद, चिंता, विकारों व कुछ व्यक्तित्व संबंधी विकारों के इलाज के लिए एसएसआरआई दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि चिकित्सकों को उनके पास पहले से अवसादरोधी दवाओं का इस्तेमाल कर रहीं या इनके इस्तेमाल के लिए सलाह लेने आने वाली महिलाओं को इन दवाओं के खतरों और फायदों के संबंध में स्पष्ट रूप से बता देना चाहिए।