Saturday, August 28, 2010

पालक-गाजर खाईये और कम कीजिए वजन


अगर आप बढ़ते वजन पर नियंत्रण पाने में सारे उपाय करने के बाद भी सफल नहीं हुए हैं, तो आपको एक आसान सा उपाय इस परेशानी से निजात दिला सकता है। ये आसान उपाय है, हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन।
चिकित्सकों का मानना है कि हरी पत्ती वाली सब्जियां महिलाओं के लिए हर तरह से फायदेमंद हैं क्योंकि ये हड्डियों को भी मजबूत करने में मददगार होती हैं।
फिजिशयन डॉ. संध्या जौहरी कम कैलोरी युक्त होने के कारण हरी सब्जियों को 'वजन प्रबंधन' के लिए सर्वश्रेष्ठ तरीके की संज्ञा देती हैं।
डॉ. संध्या ने बताया कि लड़कियां वजन कम करने के लिए डायटिंग करती हैं, अगर डायटिंग की जगह पालक और गाजर जैसी सब्जियों का सूप पिएं, तो वजन धीरे-धीरे घटने लगे। इन सब्जियों में फैट भी कम होता है, इसलिए ये हृदय रोगों की आशंका भी कम करती हैं।
उन्होंने बताया कि हरी पत्तेदार सब्जियों के पूरे गुण तब मिल सकते हैं, जब आप उन्हें कच्चा खाएं। उन्हें उबालने से उनके तत्व नष्ट हो जाते हैं।
दूसरी ओर स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. मृदुला आंजिक्य पालक और मेथी जैसी सब्जियों को लौह अयस्क युक्त होने के कारण महिलाओं के लिए फायदेमंद बताती हैं।
डॉ. मृदुला ने इस बात पर भी जोर दिया कि जिन महिलाओं में कैल्शियम की कमी हो, उन्हें भी अपने भोजन में इन भाजियों को शामिल करना चाहिए।
डॉ. मृदुला ने कहा कि एक उम्र के बाद महिलाओं की हड्डियों में कैल्शियम की कमी हो जाती है। महिलाएं अगर अपने भोजन में हर दिन हरी पत्तेदार सब्जियों को शामिल करें, तो उनमें कहीं भी फ्रैक्चर होने की आशंका 45 फीसदी तक कम हो जाती है।
बच्चों के भोजन में इन सब्जियों की महत्ता बताते हुए शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. सैबल गुप्ता ने कहा कि जिन बच्चों की दृश्य क्षमता कम हो, उनके भोजन में इन्हें शामिल करने से आंखों की रोशनी में लगातार इजाफा होता है।
डॉ. गुप्ता ने कहा कि बहुत से बच्चों की आंखें टीवी देखने और अन्य कारणों के चलते बचपन में ही कमजोर हो जाती हैं। ऐसे बच्चों को पालक, लाल भाजी और सरसों की भाजी खिलाने से उनकी आंखों की रोशनी बढ़ती है।
गौरतलब है कि पिछले दिनों लंदन में हुए एक शोध में कहा गया था कि शहर के पांच से 10 वर्ष के बच्चों में कार्टून कैरेक्टर 'पॉपोय द सेलर' को देख कर पालक खाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। इस प्रवृत्ति के कारण उनकी आंखों की रोशनी में भी इजाफा हो रहा है।
पॉपोय एक कार्टून कैरेक्टर है, जो हर समय पालक खाता है और इससे मिलने वाली शक्ति की बदौलत अपने दुश्मनों को चारों खाने चित्त करता है।

Thursday, August 26, 2010

अब कृत्रिम कार्निया से लौटेगी आंखों की रोशनी


प्रयोगशाला में निर्मित कृत्रिम कार्निया के प्रत्यारोपण के जरिए चिकित्सकों ने कई मरीजों की आंखों की रोशनी लौटाई है। दुनिया में ऐसा पहली बार हुआ है इससे लाखों दृष्टिहीनों के लिए उम्मीद पैदा हुई है।
इस नई तकनीक के जरिए मानव शरीर के ऊतकों को प्रयोगशाला में कार्निया की तरह विकसित किया जाता है।
स्थानीय समाचार पत्र 'द टेलीग्राफ' में प्रकाशित समाचार के मुताबिक चिकित्सकों ने मरीज की आंख के अगले हिस्से में क्षतिग्रस्त कार्निया को पूरी तरह हटाकर उसके स्थान पर कृत्रिम कार्निया का प्रत्यारोपण किया।
इसके बाद चिकित्सकों ने आंख की मौजूदा कोशिकाओं और तंत्रिकाओं को कृत्रिम कार्निया से जुड़ाव स्थापित करने के लिए अनुकूल स्थितियां पैदा कीं।
कार्निया आंख का वह हिस्सा या लैंस होता है जो देखने की प्रक्रिया में अहम भूमिका निभाता है।
दुनियाभर में आंखों की बीमारियों के दौरान कार्निया के क्षतिग्रस्त होने से बड़ी संख्या में लोग अंधे हो जाते हैं। दुनियाभर में फिलहाल ऐसे लोगों की संख्या एक करोड़ है।
चिकित्सकों ने प्रत्यारोपण के पहले परीक्षण में ही सफलता प्राप्त कर ली थी और बाद में इस प्रत्यारोपण से कई मरीज देख पाने में सक्षम हुए।
इस शोध का नेतृत्व कर रहे स्वीडन के लिंकोपिंग विश्वविद्यालय के मे ग्रीफित्स ने कहा कि हम इन परिणामों से बेहद उत्साहित हैं। इस परीक्षण से साबित हुआ है कि कृत्रिम कार्निया आंख के अन्य अंगों से जुड़ सकती है।
उन्होंने कहा कि इस पर कुछ और शोधों के बाद इससे लाखों दृष्टिहीन लोगों को देखने में सक्षम बनाया जा सकता है जो कि अभी कार्निया दान किए जाने का इंतजार करते हैं।

Wednesday, August 25, 2010

बच्चों के लिए फायदेमंद है मछली


मछली खाना बच्चों के दिमागी और तंत्रिका संबंधी विकास के लिए बेहद जरूरी है।
इलिनाय विश्वविद्यालय के कालेज आफ एग्रीकल्चरल साइंसेज की खानपान विशेषज्ञ सुजान ब्रेवेर ने कहा कि बच्चों को काफी मात्रा में ओमेगा-3 फैटी एसिड की जरूरत होती है। यह दिमाग, स्नायु और आंखों के विकास के लिए बहुत जरूरी है। बच्चों के लिए मछली खाना उस समय ज्यादा जरूरी होता है जब वे मां का दूध छोड़ने के बाद ठोस आहार अपनाने लगते हैं।
ब्रेवेर मानती हैं कि पांच वर्ष की उम्र का होते-होते बच्चों में खानपान संबंधी आदत बन जाती है। इस दौरान उनके अंदर खाने पीने की वस्तुओं को लेकर पसंद और नापसंद भी विकसित हो जाती है। ऐसे में माता-पिता को उनमें मछली जैसे व्यंजन की आदत डालना जरूरी है।
सालमन नाम की मछली में ओमेगा-3 फैटी एसिड सर्वाधिक मात्रा में पाया जाता है। इस एसिड के कारण बच्चों के अंदर धमनियों से संबंधित बीमारियों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है, लेकिन सच्चाई यह है कि व्यस्क लोग भी सप्ताह में दो बार मछली खाना पसंद नहीं करते।

Thursday, August 19, 2010

अनूठा है देवघर का ज्योतिर्लिग


झारखंड के देवघर जिला स्थित वैद्यनाथ धाम सभी द्वादश ज्योतिर्लिगों से भिन्न है। यही कारण है कि सावन में यहां ज्योतिर्लिग पर जलाभिषेक करने वालों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है।
वैद्यनाथधाम मंदिर के प्रांगण में ऐसे तो विभिन्न देवी-देवताओं के 22 मंदिर हैं परंतु मध्य में स्थित बना शिव का भव्य और विशाल मंदिर कब और किसने बनाया यह गंभीर शोध का विषय है। मंदिर के मध्य प्रांगण में शिव के भव्य 72 फुट ऊंचे मंदिर के अन्य 22 मंदिर हैं। मंदिर प्रांगण में एक घंटा, एक चंद्रकूप और मंदिर प्रवेश हेतु एक विशाल सिंह दरवाजा भी है।
यहां मनोरथ पूर्ण करने वाला कामना द्वादश ज्योतिर्लिग स्थापित है। यही नहीं इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है कि किसी भी द्वादश ज्योतिर्लिग से अलग यहां के मंदिर के शीर्ष पर 'त्रिशूल' नहीं बल्कि 'पंचशूल' है।
अभी सावन के समाप्त होने में करीब एक सप्ताह का समय शेष है परंतु सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अब तक यहां पहुंचने वाले शिवभक्तों की संख्या 33 लाख को पार कर चुकी है। इनमें 11 लाख से ज्यादा महिलाएं हैं।
पंचशूल के विषय में धर्म के जानकारों का अलग-अलग मत है। पंचशूल के विषय में मान्यता है कि यह त्रेता युग में रावण की लंका के बाहर सुरक्षा कवच के रूप में भी स्थापित था। उल्लेखनीय है कि धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक रावण जब शिवलिंग को कैलाश से लंका ले जा रहा था। भगवान विष्णु ने एक ग्वाले के वेश में रावण से इस शिवलिंग को लेकर यहां स्थपित किया था।
मंदिर के तीर्थ पुरोहित दुर्लभ मिश्रा के मुताबिक धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि रावण को पंचशूल के सुरक्षा कवच को भेदना आता था जबकि इस कवच को भेदना भगवान राम के भी वश में भी नहीं था। विभीषण द्वारा बतायी गई उक्ति के बाद ही राम और उनकी सेना लंका में प्रवेश कर सकी थी। उन्होंने कहा कि यही कारण है कि आज तक इस मंदिर को किसी भी प्राकृतिक आपदा का असर नहीं हुआ।
इधर, धर्म के जानकार पंडित सूर्यमणि परिहस्त का कहना है कि पंचशूल का अर्थ काम, क्रोध, लोभ, मोह तथा ईष्र्या जैसे शरीर में पांच शूलों से मुक्त होने का प्रतीक है। जबकि पंडित कामेश्वर मिश्र ने इस पंचशूल को पंचतत्वों क्षिति, जल, पावक, गगन तथा समीरा से बने इस शरीर का द्योतक बताया।
मंदिर के पंडों के मुताबिक मुख्य मंदिर में स्वर्णकलश के ऊपर स्थापित पंचशूल सहित यहां के सभी 22 मंदिरों में स्थापित पंचशूलों को वर्ष में एक बार शिवरात्रि के दिन मंदिर से नीचे लाया जाता है तथा सभी को एक निश्चित स्थान पर रखकर विशेष पूजा-अर्चना कर पुन: वहीं स्थापित कर दिया जाता है।
ज्ञात हो कि पंचशूल को मंदिर से नीचे लाने और ऊपर स्थापित करने के लिए सिर्फ एक ही परिवार के लोगों को मान्यता मिली है। इसी खास परिवार के लोगों द्वारा यह कार्य किया जाता है।

Saturday, August 14, 2010

चीजों को याद रखने के लिए देखे सपने...


जब भी लोग बिस्तर पर जाते हैं एक दूसरे को 'शुभरात्रि' और 'अच्छे सपने देखिए' कहना नहीं भूलते हैं। भले ही ऐसा वो शिष्टाचारवश या हमारे मंगल कामना के लिए कहते हों, लेकिन हाल के एक अध्ययन से यह बात सिद्ध हुई है कि सपने देखने से चीजों को याद रखने में सहायता मिलती है।
डेली एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक शोधकर्ताओं ने यह पाया है कि सपने देखने से दिमाग में याद्दाश्त के संग्रहण की क्षमता बढ़ती है। वास्तव में जब हम सोते हैं तो उस समय हमारी आंखे गतिशील रहती हैं और हम सपना देखते हैं। यह प्रक्रिया एक तरह से याद्दाश्त के साथ जुड़ी होती है।
इस शोध को कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय की नींद विशेषज्ञ डॉक्टर सारा मेडनिक ने किया है। उन्होंने अपने इस शोध के तहत लोगों के एक समूह की स्मरण शक्ति से संबंधित एक साधारणा सी जांच परीक्षा ली। यह पाया गया कि जिन लोगों को आंखों की गति के साथ झपकी लेने दी गई थी उनकी स्मरण शक्ति और इस जांच के परिणाम में 40 प्रतिशत तक की वृद्धि हो गई।
इस बारे में डॉ. मेडनिक ने कहा कि हम रोजाना जितने तरह की सूचनाएं ग्रहण करते हैं उनको स्मरण शक्ति के द्वारा संजोकर रख लेने और बाद में उपयोग करने के लिए आंखों की गतिशीलता के साथ सोना महत्वपूर्ण है।

Friday, August 13, 2010

सावन में गूंजती है भोजपुरी लोकगीतों की गूंज


यूं तो सावन के मनभावन महीने में पूरा उत्तर भारत ही बूंदों की अठखेलियों और बादलों की आंख-मिचौली के बीच हर तरफ बिखरी हरियाली का आनंद लेता है, लेकिन उत्तर प्रदेश के पूर्वाचल क्षेत्र में इस दौरान भोजपुरी लोकगीतों की गूंज के साथ सावन की एक अलग छटा दिखाई देती है।
पूर्वाचल में इस पूरे माह को एक त्यौहार के रुप में मनाया जाता है और जहां खेत, खलिहान और बाग-बगीचों में हरियाली छाई रहती है। वहीं, सभी के मन में एक अजीब सा उत्साह हिलोरे लेता हुआ गांव-गांव, गली-गली भोजपुरी लोकगीतों को गाया जाता है।
सावन महीने में पड़ने वाली नाग-पंचमी के दिन तो एक खास उत्साह पूरे पूर्वाचल पर छाया रहता है और खासकर युवतियों और नवविवाहिता लड़कियां झुंड बनाकर पेड़ों की डालों पर पड़े झूलों के ऊंचे हुलारे लेती हुई अपनी सखियों के संग भोजपुरी लोकगीत गाती हैं।
सावन के झूले के साथ गाए जाने वाले गीतों में संयोग और वियोग रस के गीतों की भरमार रहती है और साथ ही राधा-कृष्ण के प्रसंगों का जिक्र भी इन गीतों में भरपूर पाया जाता है।
इस माह में सुहागन अपने प्रिय को अपने आसपास ही चाहती है और उसे सावन का महीना अपने प्रिय के बिना च्च्छा नहीं लगता..''
हमके ना भावे हो सावन बिना सजनवा हो ननदी।''
...तो कहीं झूलों पर झूलती सजी संवरी युवतियां..,
राधा संग में झूला झूले बनवारी हे गोइया.. और
घेरि-घेरि आई घटा कारी-कारी सखिया..
के गीत कानों में अमृत रस घोलते है।
आज की आधुनिकतावादी, भागदौड़ और शहरी संस्कृति में ये प्राचीन परंपराएं कम जरुर हो रही है, परन्तु आज भी पूर्वाचल के गांवों में इसका विशेष महत्व है।
नागपंचमी के दिन यह एक सांस्कृतिक त्यौहार की तरह मनाया जाता है और झूला झूलने का क्रम पूरे एक महीने चलता है तथा गांवों में महिलाएं रंग-बिरंगे वस्त्र पहनकर श्रृंगार करके झूला झूलते समय कजरी गाती है।
महिलाओं का झुंड बगैर किसी तैयारी के रात भर नाटक नौटंकी भी करती हैं और जब वह एक सुर में गीत गाती है तो पूरे माहौल में एक अजीब सी मस्ती रात के सन्नाटे को तोड़ती हुई हर किसी के मन में गुदगुदी पैदा कर देती है।

Wednesday, August 11, 2010

जूते पॉलिश कर भाई के इलाज के पैसे जुटा रही हैं बहनें


गंभीर बीमारी से पीडि़त अपने भाई के इलाज के लिए उत्तर प्रदेश के कानपुर की दो बहनें जो कर रही हैं, वह दुनिया की हर बहन के लिए एक नजीर है।
सृष्टि [15] और मुस्कान [9] नाम की दो बहनें अविकासी रक्ताल्पता [अप्लास्टिक एनीमिया] से पीडि़त अपने भाई अनज [14] के इलाज का पैसा जुटाने के लिए पिछले कुछ समय से शहर के विभिन्न इलाकों में लोगों के जूतों में पॉलिश करने का काम कर रही हैं।
कानपुर शहर के खलासी लाइन इलाके में रहने वाली इन बहनों के पिता पेशे से एक स्कूटर मैकनिक हैं, जो बेटे के इलाज के लिए अपना सब कुछ गिरवी रख चुके हैं।
पिता मनीष बहल [43] ने कहा कि 'चिकित्सकों का कहना है कि मेरे बेटे का अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण [बोन मैरो ट्रांसप्लांट] करना पड़ेगा, जिसमें करीब 20 लाख रुपये का खर्च आएगा। मेरी बेटियों को यह बात पता है कि उनके पिता अकेले इलाज के लिए इतने सारे पैसे नहीं जुटा सकते हैं। इसलिए वे कठिन मेहनत से पैसे इकट्ठा करके अपने पिता का सहारा देने की कोशिश कर रही हैं।
उन्होंने कहा कि वैसे तो मुझे पता है कि मेरी बेटियां जूते पॉलिश करके कभी भी 20 लाख रुपये नहीं जुटा सकती हैं, लेकिन उनका जज्बा और कठिन परिश्रम मुझमें सकारात्मक सोच का संचार करता हैं। मुझे ऐसी बेटियों का पिता होने पर गर्व महसूस होता है।
अविकासी रक्ताल्पता एक असाध्य रक्त विकार होता है, जिसमें अस्थि मज्जा पर्याप्त नई रक्त कणिकाओं का निर्माण नहीं कर पाता है। यह रक्त विकार, गंभीर होने पर जानलेवा हो जाता है।
दोनों बहनें हाथ में 'मेरे भाई को बचाओ' लिखी तख्ती लेकर शहर के अलग-अलग मुहल्लों, बाजारों, बस स्टेशन और रेलवे स्टेशन जैसे भीड़-भाड़ वाले जगहों पर जाकर लोगों से जूते-चप्पल पॉलिश कराने का अनुरोध करती हैं।
कक्षा पांच में पढ़ने वाली मासूम मुस्कान कहती हैं कि मैं अपने भाई को जल्द से जल्द घर ले जाना चाहती हूं। भाई के इलाज के पैसे जुटाने के लिए मै कठिन परिश्रम करूंगी। मेहनत से इकट्ठा किये पैसे हम चिकित्सकों के देंगे जो हमारे भाई का इलाज करेंगे।
हर दिन सृष्टि और मुस्कान स्कूल से वापस लौटने के बाद अपने काम पर निकल पड़ती हैं।
बहल के मुताबिक दोनों बेटियों ने उन्हें बताया कि कई लोग उनके गले में तख्ती देखकर उनके भाई के बारे में पूछते हैं। हमारे परिवार के हालात सुनकर कुछ लोग 50 से 100 रुपये की मदद कर देते हैं।
उन्होंने कहा कि हम मददगार लोगों की भावनाओं का दिल से सम्मान करते हैं। वैसे ये बड़ा सत्य है कि हमें अनुज को बचाने के लिए एक बड़ी धनराशि की जरूरत है।
फिलहाल कानपुर के आर एल रोहतगी अस्पताल में अनुज का उपचार चल रहा है, जहां उसकी हालत बिगड़ने के बाद भर्ती कराया गया था।
बहल कहते हैं कि असल में जन्म के दो महीने बाद ही अनुज अविकासी रक्ताल्पता से ग्रसित हो गया था। किसी तरह पूर्वजों द्वारा छोड़ा गया कीमती सामान और गहने गिरवी रखकर मैं उसका उपचार करवा रहा हूं।
उन्होंने कहा कि अपने बेटे के उपचार के लिए मैंने उत्तर प्रदेश के साथ-साथ बाहर के कई चिकित्सकों से परामर्श किया। बाद में मुंबई के एक चिकित्सक की देखरेख में अनुज की हालत बेहतर होने लगी। चिकित्सक ने कहा कि अनुज का हर छह माह में रक्त आधान [ब्लड ट्रांसफ्यूजन] करवाना पड़ेगा। साथ ही उसे कुछ दवाइयों की भी आवश्यकता होगी।
उन्होंने बताया कि धीरे-धीरे 1998 के बाद अनुज के सामान्य जीवन जीना शुरू कर दिया, लेकिन जुलाई 2009 में एक बार फिर उसकी हालत बिगड़ गई।
अपने बेटे के उपचार पर करीब 15 लाख रुपये खर्च कर चुके बहल को चिकित्सकों ने बताया कि अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण से ही उनके बेटे की जान बच सकती है।
फिलहाल अनुज का इलाज कर रहे आर एल रोहतगी अस्पताल के चिकित्सक ए के पांडे ने कहा कि मैंने अनुज की जांच रिपोर्ट का अध्ययन किया है। उसे अतिविशिष्ट चिकित्सीय सुविधाओं वाले अस्पताल में भर्ती कराने की आवश्यकता है, जहां पर उसका अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण हो सके।

Saturday, August 7, 2010

माइका की चादरों के बीच हुई जीवन की उत्पत्ति


धरती पर जीवन की शुरुआत कब हुई? इस लाख टके के अर्से पुराने सवाल का एक नया जवाब सामने आया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी पर जीवन का आरम्भ सम्भवत: खनिज माइका की चादरों के बीच हुआ।
कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय के एक दल ने 'लाइफ बिटवीन द शीट्स' माइका परिकल्पना तैयार की है। इसके बारे में 'जर्नल ऑफ थेयोरेटिकल बायोलॉजी' के आगामी अंक में विस्तार से जिक्र किया गया है।
'लाइफ बेटवीन द शीट्स' मिका परिकल्पना के मुताबिक मिका की परतों के बीच आमतौर पर बनने वाले संरचित कक्षों में सम्भवत: ऐसे अणु संरक्षित हुए होंगे जिनसे आगे चलकर कोशिकाओं का निर्माण हुआ।
संरचित कक्षों में सही भौतिक और रासायनिक वातावरण मिलने से फले-फूले अणु बाद में कोशिकाओं में तब्दील हुए।
अध्ययन दल की मुख्य वैज्ञानिक हेलेन हंसमा ने कहा कि चूंकि माइका की परतें जीवित कोशिकाओं तथा प्रोटीन, न्यूक्लियक अम्ल, कार्बोहाइड्रेट्स और वसा जैसे बड़े जैविक अणुओं के जीवन के लिए अनुकूल होती हैं इसलिए माइका परिकल्पना भी अन्य मशहूर परिकल्पनाओं की इस राय से सहमत है कि जीवन का आरम्भ राइबोन्यूक्लिक एसिड [आरएनए], वसायुक्त वैसिलेस और आदिम चयापचय के रूप में हुआ था।
उन्होंने कहा कि हो सकता है कि माइका में सभी प्राचीन चयापचयों, वसा वैसिलेस और आरएनए की दुनिया समाई रही हो।

Thursday, August 5, 2010

अब राह चलेत पढि़ए कामसूत्र का पाठ


यदि आप कामसूत्र का पाठ पढ़ना चाहते हैं तो इसके लिए आपको अब इस किताब को पढ़ने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि इस पुस्तक को एक 'ऑडियो बुक' का रूप दिया जा चुका है। इससे आप कहीं भी और कभी भी इसे आसानी से सुन सकते हैं।
वेबसाइट 'एक्सप्रेस डॉट को डॉट यूके' के मुताबिक ब्रिटेनवासी अब इस पुरानी पुस्तक को अपने घर में अथवा बस या रेलगाड़ी में सफर करते समय भी सुन सकते हैं।
इस ऑडियो का प्रकाशन करने वाले 'ब्यूटीफुल बुक्स' को उम्मीद है कि उसकी इस पहल से नई पीढ़ी के लोग 1,600 साल पहले मित्रता, शादी और संबंधों के बारे में लिखी गई पुस्तक के बारे में आसानी से जान सकते हैं।
ऑडियो में इस पुस्तक की व्याख्या करने वाली ब्रिटेन की टेलीविजन स्टार तान्या फ्रैंक ने कहा कि जब मुझे कामसूत्र को पढ़ने के लिए कहा गया तो मैं काफी परेशान और उत्साहित भी थी।
फ्रैंक ने कहा कि जब हमने इसे पूरा कर लिया तो काफी राहत महसूस हुई।
ब्यूटीफुल बुक्स के प्रबंध निदेशक सिमोन पैथरिक कहते हैं कि अब इस किताब को पढ़ने के लिए शर्मिदा होने की आवश्यकता नहीं हैं। आप इसे अपने एमपी-3 प्लेयर पर आसानी से डाउनलोड कर सकते हैं।
ऑडियो कामसूत्र की कीमत 14.2 डॉलर है और इसे 'ब्यूटीफुल-बुक्स डॉट को डॉट यूके' से डाउनलोड भी किया जा सकता है।

Wednesday, August 4, 2010

चीनी मांझा से पुश्तैनी कारीगरों के सामने रोजी-रोटी का सवाल


वैश्वीकरण के दौर में चीन का सामान भारत के बाजारों पर काबिज होता जा रहा है। पिछले कुछ सालों से रंग-बिरंगी पतंग उड़ाने में काम आने वाले बरेली के मशहूर मांझे पर भी अब चीनी मांझे की मार पड़नी शुरु हो गई है, जिससे पुश्तैनी कारीगरों के सामने रोजी-रोटी का सवाल उत्पन्न हो गया है।
मांझा और पतंग कारोबार में देश भर के तकरीबन तीन लाख कारीगर काम करते हैं और पिछले दो सालों से कारखानों में रसायनों एवं धातुओं के अंश मिश्रित चीनी मांझे ने हाथ से निर्मित मांझा कारोबार पर असर डालना शुरू कर दिया है।
हाथ से बने मांझे की तुलना में चौथाई कीमत पर उपलब्ध चाइनीज मैटेलिक मांझे के कारण बरेली सहित देश भर के मांझा कारीगरों को बेकारी और भुखमरी की कगार पर खड़ा कर दिया है। हालांकि, मांझा कारोबार बचाने के लिए सामाजिक संगठन, श्रमिक संगठन, बुद्धिजीवियों ने मुहिम शुरू कर दी है।
देश भर में बरेली का हस्तनिर्मित मांझा सर्वश्रेष्ठ माना जाता है, यही कारण है कि भारत सहित विदेश में भी बरेली के मांझे की अपनी अलग पहचान है।
हस्तनिर्मित मांझा रोजगार बचाओ आंदोलन के जनक एवं लोकाधिकार संस्था के राज्य समन्वयक हरीश पटेल ने बताया कि संस्था द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि चीनी [मैटेलिक] मांझे का कारोबार यूं ही बढ़ता रहा तो स्वदेशी हस्तनिर्मित मांझे का कारोबार समाप्त हो जाएगा और अगले दो वर्षो में दो लाख माझा कारीगर बेरोजगार हो जाएंगे।
पटेल ने बताया कि पूरे देश में लगभग 125 करोड़ रुपये के मांझे का कारोबार होता है, जिसमें अकेले बरेली में 60 करोड़ रुपये वार्षिक कारोबार होता है।
मांझा कारीगरों के बीच काम करने वाले पूर्व मेयर एवं रोटरी इंटरनेशनल के पूर्व गर्वनर डा. आई. एस. तोमर ने कहा कि चीनी मांझे में घातक रसायनों का प्रयोग किया जाता है।
एक सर्वेक्षण के अनुसार, बरेली शहर में मांझा कारोबार से जुड़े 30 हजार परिवार आर्थिक विपन्नता की मार झेल रहे है। मांझा कारीगरों को किसी प्रकार की आर्थिक मदद नहीं मिल रही है। इस व्यवसाय को कुटीर उद्योग का दर्जा नहीं दिया गया है।
मांझा कारीगर इनाम अली कहते हैं कि हस्तनिर्मित मांझे में सुहागा, चावल, प्राकृतिक रंग लोवान, छाल, बोरिक पाउडर जैसी चीजों का इस्तेमाल किया जाता है। उन्होंने बताया कि मांझा कारीगरों की मांझा निर्माण की शैली परम्परागत है और इनकी आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं है और न ही ऋण प्राप्ति के स्रोत हैं।
उन्होंने बताया कि मांझा कारोबारियों के प्रति सरकार का उपेक्षित और उदासीन रवैया पहले से था और अब वैश्विक बाजार की आड़ में चीनी मांझे के भारतीय बाजार में आने से मांझा कारोबारियों की कमर टूट गई है। चीनी मांझा हस्तनिर्मित स्वदेशी मांझे की अपेक्षा एक चौथाई कीमत पर उपलब्ध हो जाता है।
विभिन्न संगठनों द्वारा चीनी मांझे पर रोक की मांग की जा रही है क्योंकि यह जब कम दाम पर विकल्प उपलब्ध कराता है तो कोई अधिक दाम क्यों देगा? चीनी मांझे के कारण हस्तनिर्मित मांझा कारीगरों की आय निम्न स्तर पर पहुंच गई है, जिसके कारण मांझा कारीगर तंगहाली में अपना जीवनयापन कर रहे हैं और परिणाम स्वरुप पलायन को मजबूर है।
मांझा कारोबारियों की स्थिति के मद्देनजर केंद्र एवं राज्य सरकार को बेहतर कदम उठाने चाहिए और मांझा कारोबारियों की आर्थिक मदद के लिए आगे आना चाहिए। मांझा कारोबार को कुटीर उद्योग का दर्जा प्रदानकर उन्हें सरकारी सुविधाएं उपलब्ध करानी चाहिए।
पटेल बताते हैं कि बरेली के हस्तनिर्मित मांझे को महाराष्ट्र में सर्वाधिक पसन्द किया जाता है और नासिक, नागपुर तथा मुंबई में बरेली निर्मित मांझे के शौकीनों की खासी संख्या है। इसके साथ ही देश के अन्य भागों दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा, गुजरात में भी बरेली का मांझा लोकप्रिय है।
बरेली का हस्तनिर्मित मांझा मुंबई के रास्ते इण्टर नेशनल स्टैण्डर्ड पैकिंग के साथ फ्रांस, कोरिया, इंग्लैंड, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और पाकिस्तान तक जाता है जहां विभिन्न मौकों पर पतंगबाजी का लुभावना खेल खेला जाता है।
विभिन्न संगठनों की मांग है कि सरकार चीनी मांझे पर प्रतिबंध लगाए और स्वदेशी मांझा कारीगरों के हितों की रक्षा करें। वरना बरेली के 30 हजार तथा देश के तीन लाख मांझा कारीगरों का अस्तित्व खत्म हो जाएगा और देश की प्रमुख धरोहर अतीत के गर्भ में समा जाएगी।

Tuesday, August 3, 2010

महिलाओं को लाल रंग में ज्यादा आकर्षक लगते हैं पुरुष


यदि आप महिलाओं को आकर्षित और उन्हें अपने करीब लाना चाहते हैं तो लाल रंग का चुनाव कीजिए। महिलाओं को वे पुरुष ज्यादा आकर्षक लगते हैं जो लाल रंग के वस्त्र पहनते हैं, इसी तरह महिलाओं को पुरुषों की वे तस्वीरें ज्यादा सुहाती हैं जिनमें लाल रंग की चौखट या फ्रेम हो।
लाल रंग को महिलाओं के प्रति पुरुषों का आकर्षण बढ़ाने वाला और खेल में अच्छे प्रदर्शन को बढ़ावा देने वाला रंग माना जाता है। समाचार पत्र 'टेलीग्राफ' में प्रकाशित हुई एक रिपोर्ट में पहली बार यह सामने आया है कि महिलाओं को भी पुरुषों पर लाल रंग ही अच्छा लगता है।
अमेरिका के रोशेस्टर विश्वविद्यालय और जर्मनी के म्यूनिख विश्वविद्यालय के शोधकर्ता एंड्रयू इलियट कहते हैं कि आमतौर पर लाल रंग को केवल महिलाओं के लिए आकर्षक रंग माना जाता है।
उन्होंने कहा कि उनका अध्ययन बताता है कि लाल और आकर्षण के बीच का संबंध पुरुषों को लुभाता है।
'जर्नल फॉर एक्सपेरीमेंटल साइकोलॉजी' में प्रकाशित हुए अध्ययन के लिए 25 पुरुषों और 32 महिलाओं को एक आदमी की श्वेत-श्याम तस्वीरें दिखाई गईं। इनमें से एक तस्वीर लाल पृष्ठभूमि में ली गई थी और दूसरी सफेद पृष्ठभूमि में। इसके बाद अध्ययन में शामिल लोगों से इन तस्वीरों के प्रति आकर्षण से संबंधित तीन प्रश्न पूछे गए थे।
महिलाओं ने आदमी की लाल रंग की फ्रेम से घिरी तस्वीर को ज्यादा आकर्षक बताया, जबकि पुरुषों के साथ ऐसा कुछ नहीं था।
एक अन्य प्रयोग में महिलाओं को एक आदमी की लाल और हरी पोशाक की तस्वीरें दिखाई गईं। इसमें भी महिलाओं को लाल पोशाक वाली तस्वीर ज्यादा आकर्षक लगी।
वैसे अलग-अलग संस्कृतियों में लाल रंग का मतलब अलग-अलग है, लेकिन सभी देशों की महिलाओं को लाल रंग के परिधानों में पुरुष ज्यादा आकर्षक लगते हैं।