Tuesday, January 26, 2010

इंटरनेट पर सेक्स से बच्चे बने समय से पहले बड़े


इंटरनेट की सतरंगी दुनिया ज्ञान का भंडार है, लेकिन इसका एक ऐसा स्याह पहलू भी है, जो छोटी उम्र के बच्चों के सामने सेक्स संबंधी रहस्य उजागर कर रहा है, जो हमारे सामाजिक परिवेश में अब तक ढके-छिपे रहे हैं और जिन्हें एक उम्र से पहले जानना समाज और बच्चे दोनों के लिए घातक हो सकता है। राजधानी के इथोस हेल्थकेयर एंड एजुकेशन से जुड़े मनोचिकित्सक डा. एस के शर्मा कहते हैं कि एक विषय के रूप में यौन के प्रति जिज्ञासा का होना कोई नई या असामान्य बात नहीं है, लेकिन इस विषय की हर जानकारी उम्र के लिहाज से ही दी जानी चाहिए। इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले बच्चों के सामने ऐसी कोई बंदिश नहीं होती। यौन संबंधी जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल धीरे-धीरे आदत में तब्दील हो जाता है।
इस संबंध में शर्मा ने एक उदाहरण देते हुए बताया कि अपर्णा [बदला हुआ नाम] ने महज 14 साल की उम्र में अपने एक दोस्त के कहने पर पहली बार इंटरनेट पर सेक्स के बारे में जानकारी हासिल की और अगले तीन साल में उसे पता भी नहीं चल पाया कि कब वह इसकी आदी हो गई।
उसके माता-पिता को जब उसकी इस आदत के बारे में पता चला तो उन्होंने उसपर तमाम तरह की बंदिशें लगाई और उसका स्कूल तक जाना बंद करवा दिया। उसकी इस लत पर काबू पाने के लिए तमाम जतन किए गए, लेकिन बच्ची के बालमन को समझने और समस्या की जड़ तक जाने की कतई कोशिश नहीं की गई। नतीजा यह हुआ कि बच्ची ने खुदकुशी कर ली।
जाने माने मनोचिकित्सक और यौन मामलों के जानकार डा. संजय चुघ ने कहा कि आदमी का दिमाग हर दबी-छिपी चीज के बारे जानना चाहता है। उसे उस चीज से जितना दूर रखा जाता है वह उसके और करीब जाने के लिए ललचाता है।
मैक्स हेल्थकेयर के मनोचिकित्सक डॉक्टर समीर पारीख कहते हैं कि इंटरनेट पर सेक्स से जुड़ी चीजों की सहज उलब्धता और उन तक बच्चों की बेरोक टोक पहुंच, इस नए चलन के लिए काफी हद तक जिम्मेदार हैं और सबसे ज्यादा गंभीर बात यह है कि अभिभावक बच्चों की इस आदत को बहुत गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। समाज में अलग-थलग रहने की प्रवृत्ति और उनकी व्यस्त दिनचर्या भी इसकी एक वजह है।
हालांकि शर्मा का मानना है कि मां-बाप लापरवाही के कारण बच्चे की इस आदत की ओर ध्यान नहीं देते। विषय की गंभीरता को देखते हुए उन्हें बढ़ते बच्चों की गतिविधियों पर नजर रखनी चाहिए और बदलते परिवेश में बच्चों की जिज्ञासाओं को शांत करना चाहिए।
इस इंद्रजाल के च्च्चों के कोमल मन पर पड़ने वाले असर पर डा. चुघ कहते हैं कि इंटरनेट पर उपलब्ध सेक्स संबंधी जानकारियों का स्वरूप ऐसा है कि च्च्चे उसे समझने के लिए मानसिक तौर पर सक्षम नहीं हैं। वहां मिलने वाले अधकचरे ज्ञान का उन पर बुरा असर भी पड़ सकता है और वह सेक्स के बारे में गलत छवि बना सकते हैं।
डा. शर्मा कहते हैं कि यौन शिक्षा बहुत जरूरी है, लेकिन उसका उचित माध्यम होना बहुत जरूरी है। स्कूलों में च्च्चों की काउंसलिंग का इंतजाम होना चाहिए। अभिभावक और शिक्षकों का भी इस विषय पर एक दूसरे से समन्वय हो।
चुघ स्कूलों में ऐसे स्वस्थ वातावरण की वकालत करते हैं जहां च्च्चों को उनकी उम्र के हिसाब से सेक्स शिक्षा दी जाए, ताकि उनका बालपन अपनी जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए इधर-उधर अधकचरे ज्ञान की तलाश न करे।

3 comments:

Alok Nandan said...

नेट सेक्स से बच्चों को बचाना बहुत ही जरूरी है...संचार क्रांति का यह नकारात्मक पक्ष है और बहुत बड़ी चुनौती भी है....बेहतर आलेख

Udan Tashtari said...

सार्थक आलेख एवं विचारणीय विषय!

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.

timeforchange said...

jab net nahi tha tab bhi log aise karyon mein lipt hote the , jariya doosra hua karta tha , jaroorat hai sex jaise topic ko samjhne ki , hum ise taboo mante hain , ye galat hai , maa ,baap hi is cheej ko sahi tarah se handle kar sakte hain .vaise bhi hum 1 arab aabadi ka desh aise hi nahi ban gaye hain .