Thursday, July 22, 2010

आधुनिक हो गया दादी-नानी का एजेंडा


गए वो दिन जब दादी नानी की परिभाषा झुकी कमर, सफेद बालों और चश्मा चढ़ी बुजुर्ग महिला की हुआ करती थी, जिसकी भूमिका नाती-पोतों को कहानी सुनाने तक सीमित थी। बदलते समय ने अब चुस्त तंदरूस्त दादी नानी के एजेंडे में आधुनिक तरीके से बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी डाल दी है।
कामकाजी अभिभावकों की व्यस्तता को देखते हुए दादी-नानी ने भी अपने सामने मौजूद चुनौतियों को स्वीकार कर मोर्चा संभाल लिया है।
करीब साल भर पहले तक कृषि विभाग में काम करने वाली ऊषा तैलंग अब अपनी पोती को सुबह तैयार कर, उसे स्कूल बस तक छोड़ने जाती हैं, दोपहर को उसे लेने जाती हैं, होमवर्क कराती हैं और उसके साथ वीडियो गेम भी खेलती हैं। वह बताती हैं कि रिटायर हो चुकी हूं और अब पोती की जिम्मेदारी संभाल रही हूं। मेरा बेटा और बहू दोनों ही नौकरी करते हैं। पोता सवा साल का है इसलिए अभी उसकी देखभाल में भागदौड़ नहीं करनी पड़ती।
मनोविज्ञानी विभा तन्ना कहती हैं कि बच्चों को दादी-नानी से गहरा लगाव होता है। यही बात उनके भविष्य को निखारने में बहुत उपयोगी साबित हो सकती है। अभिभावकों की गैर हाजिरी में दादी-नानी उनकी जितनी अच्छी तरह देखभाल करेंगी उतनी कोई नहीं कर सकता।
सात वर्षीय नाती को यूट्यूब पर कहानियां सुनाने में बिमला वाष्र्णेय को खूब मजा आता हैं। वह बताती हैं कि उसके चक्कर में मैंने कई कहानियां खोज डालीं। अब मजा भी आता है। नाती की खातिर मैंने कंप्यूटर चलाना और पित्जा, पास्ता, मैकरोनी बनाना सीखा।
बिमला कहती हैं कि अभी नाती की सर्वाधिक देखभाल की जरूरत है। उसके साथ दोस्ताना रिश्ता रखते हुए उसे नई-नई जानकारी देना जरूरी है। बच्चे अनगढ़ मिट्टी की तरह होते हैं, जैसा हम चाहें, उनका भविष्य गढ़ सकते हैं, लेकिन इसके लिए उनकी बातों में दिलचस्पी ले कर उनका विश्वास जीतना जरूरी होता है।
कुछ देशों में 23 जुलाई को 'गॉर्जियस ग्रैंडमा डे' मनाया जाता है जिसका कारण शायद दादी नानी की महत्वपूर्ण भूमिका ही है। भारत में ऐसे किसी दिन का चलन नहीं है, लेकिन संयुक्त परिवार की परंपरा होने के कारण घरों में दादी-नानी का खास महत्व है। आधुनिकता की मार ने ज्यादातर संयुक्त परिवारों की नींव हिला दी है, लेकिन नौकरीपेशा माता पिता के पास अपने बच्चों को दादी-नानी के हवाले करने के अलावा और कोई चारा नहीं है।
विभा कहती हैं कि दादी-नानी से रिश्ता अटूट होता है जो बच्चों के मानसिक विकास में बहुत सहायक होता है। उनके पास उम्र का अनुभव भी होता है इसीलिए बच्चों की परवरिश में उनकी अहम भूमिका हो सकती है।
ऊषा कहती हैं कि पोती को नियमित होमवर्क कराते समय मैंने महसूस किया कि आज के बच्चों के लिए कितना कठिन समय आ गया है। हम लोगों ने अपने समय में प्रोजेक्ट, स्लाइड्स आदि के बारे में नहीं सुना था। आज तो बच्चों के साथ अगर बड़े न लगें तो उनका होमवर्क मुश्किल हो जाएगा।
वह कहती हैं कि मेरे बेटे बहू चाह कर भी इतना समय नहीं निकाल पाएंगे। ऐसे में मुझे ही हिम्मत करनी होगी। मैंने तो पोती का प्रोजेक्ट बनाने में उसकी काफी मदद की। साथ ही खुद भी सीख लिया।
विभा कहती हैं कि बदलते समय के साथ खुद को बदल कर दादी-नानी एक रोल मॉडल पेश कर रही हैं। यह जरूरी भी है, उनके लिए भी और बच्चों के लिए भी।

No comments: