Friday, August 13, 2010

सावन में गूंजती है भोजपुरी लोकगीतों की गूंज


यूं तो सावन के मनभावन महीने में पूरा उत्तर भारत ही बूंदों की अठखेलियों और बादलों की आंख-मिचौली के बीच हर तरफ बिखरी हरियाली का आनंद लेता है, लेकिन उत्तर प्रदेश के पूर्वाचल क्षेत्र में इस दौरान भोजपुरी लोकगीतों की गूंज के साथ सावन की एक अलग छटा दिखाई देती है।
पूर्वाचल में इस पूरे माह को एक त्यौहार के रुप में मनाया जाता है और जहां खेत, खलिहान और बाग-बगीचों में हरियाली छाई रहती है। वहीं, सभी के मन में एक अजीब सा उत्साह हिलोरे लेता हुआ गांव-गांव, गली-गली भोजपुरी लोकगीतों को गाया जाता है।
सावन महीने में पड़ने वाली नाग-पंचमी के दिन तो एक खास उत्साह पूरे पूर्वाचल पर छाया रहता है और खासकर युवतियों और नवविवाहिता लड़कियां झुंड बनाकर पेड़ों की डालों पर पड़े झूलों के ऊंचे हुलारे लेती हुई अपनी सखियों के संग भोजपुरी लोकगीत गाती हैं।
सावन के झूले के साथ गाए जाने वाले गीतों में संयोग और वियोग रस के गीतों की भरमार रहती है और साथ ही राधा-कृष्ण के प्रसंगों का जिक्र भी इन गीतों में भरपूर पाया जाता है।
इस माह में सुहागन अपने प्रिय को अपने आसपास ही चाहती है और उसे सावन का महीना अपने प्रिय के बिना च्च्छा नहीं लगता..''
हमके ना भावे हो सावन बिना सजनवा हो ननदी।''
...तो कहीं झूलों पर झूलती सजी संवरी युवतियां..,
राधा संग में झूला झूले बनवारी हे गोइया.. और
घेरि-घेरि आई घटा कारी-कारी सखिया..
के गीत कानों में अमृत रस घोलते है।
आज की आधुनिकतावादी, भागदौड़ और शहरी संस्कृति में ये प्राचीन परंपराएं कम जरुर हो रही है, परन्तु आज भी पूर्वाचल के गांवों में इसका विशेष महत्व है।
नागपंचमी के दिन यह एक सांस्कृतिक त्यौहार की तरह मनाया जाता है और झूला झूलने का क्रम पूरे एक महीने चलता है तथा गांवों में महिलाएं रंग-बिरंगे वस्त्र पहनकर श्रृंगार करके झूला झूलते समय कजरी गाती है।
महिलाओं का झुंड बगैर किसी तैयारी के रात भर नाटक नौटंकी भी करती हैं और जब वह एक सुर में गीत गाती है तो पूरे माहौल में एक अजीब सी मस्ती रात के सन्नाटे को तोड़ती हुई हर किसी के मन में गुदगुदी पैदा कर देती है।

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