Thursday, February 4, 2010

पतंगबाजी पर चढ़ा तकनीक व प्रौद्योगिकी का मुलम्मा


वीडियोगेम और इंटरनेट के इस दौर में कहीं गुम होते जा रही पतंग को बचाने तथा आसमान की सैर कराने के लिए शहर के पंतगबाजों की आकांक्षाएं कुलांचे भरने लगी है और वे अपने उत्साह के डोर को ढील देने के लिए बाकायदा अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी की इस्तेमाल कर रहे हैं।
आकाश में ऊंची, ऊंची और ऊंची उड़ती पतंग देखने में जितना मजा आता है उतना ही आनंद अपनी पतंग को आसमान की सैर कने में आता है। पतंगबाजी अब शौक तक सीमित नहीं रह गई है, बल्कि यह पेशेवर आयोजनों का रूप ले रही है। अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में टक्कर देने के लिए अब पतंग निर्माण में लगने वाली सामग्री का विदेशों से आयात किया जा रहा है ताकि वैश्विक स्तर पर भारतीय पतंग किसी से पीछे न रहे।
मंगलूर स्थित पतंगबाजी के माहिर और एक स्थानीय पतंग क्लब के सदस्य सुभाष पाई कहते हैं कि देश में पतंगबाजी के शौक को पुनर्जीवित करने की हमारी कड़ी इच्छा है और बच्चों में हम इसके प्रति रुचि जगाना चाहते हैं, जो अब टीवी और वीडियो गेम से चिपके रहते हैं।
पतंगबाजी के इन समर्पित हुनरमंदों ने स्थानीय क्लब का गठन किया है और इस खेल को बढ़ावा देने के लिए वे पतंग उड़ाने के आयोजन तथा पतंग निर्माण की कार्यशालाएं आयोजित कर रहे हैं। मनोरंजन उद्योग से प्रेरित होकर काइट क्लबों ने विवाह समारोहों में भी पतंगबाजी का आयोजन करना शुरू कर दिया है।
दहाणू के पेशेवर पतंगबाज अशोक शाह ने कहा कि विवाह में शिरकत करने वाले मेहमानों से हमें उत्साहजनक प्रतिक्रिया प्राप्त हुई। पतंगबाजी में भाग लेने या उसका आनंद उठाने का विचार लोगों को खूब भा रहा है और हमारी योजना इस तरह के और विवाह पतंगबाजी उत्सव आयोजित करने की है।
बहरहाल पेशेवर पतंगबाजी एक महंगा व्यवसाय है। सामग्री के उपयोग और कई दिनों तक लगने वाले श्रम के कारण इसे संचालित करने का खर्च हजारों रुपये में हो सकता है।
हैदराबाद के पतंगबाज श्रीनिवास के अनुसार, इसके उपयोग में आने वाली अधिकतर सामग्री विदेश से आयात की जाती है। पतंग का रिपस्टॉप नाइलॉन महंगा होता है और इसमें रॉड का उपयोग होता है।
उदयपुर के अब्दुल मलिक गाय के आकार वाली पतंग उड़ाकर दर्शकों का आकर्षण का केंद्र बने थे। मलिक ने कहा कि पतंग को अपनी कल्पना के अनुरूप डिजाइन देना और इसे उड़ाने को लेकर एयरोडायनेमिक्स पर काम करना काफी रोचक अनुभव होता है।
मलिक कहते है कि पतंग उड़ना बच्चों का खेल भर नहीं है, बल्कि इसके लिए सोची समझी योजना और समन्वय के साथ काम करना होता है। उनमें से कई ने अपनी कल्पनाओं को मूर्त रूप देने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करना शुरू कर दिया है।
पतंगबाजी में तकनीकी विशेषज्ञ भी पीछे नहीं हैं। कंप्यूटर साफ्टवेयर विशेषज्ञ मलिक पतंग का कंप्यूटर सिमुलेशन करते हैं, उसे सही आकार प्रकार देते हैं और बेकार की चीजों को हटाते हैं। उन्होंने कहा कि पतंग को डिजाइन करने के लिए मैं कंप्यूटर का उपयोग करता हूं।
अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतिस्पर्धा प्रौद्योगिकी के साथ-साथ पतंगबाज निर्माण में उच्च गुणवत्ता की आयातित सामग्री का उपयोग भी कर रहे हैं।
बेंगलूर के वीके राव ने 1989 में अहमदाबाद में आयोजित अंतरराष्ट्रीय पतंग महोत्सव में शिरकत की थी। राव के अनुसार यह शौक बहुत पुष्पित और पल्लवित हो चुका है। अब इसमें नए नए प्रयोग हो रहे हैं। यहां जक्कुर में एक डोर से तीन हजार से अधिक पतंगों को उड़ाकर कीर्तिमान बनाने वाले राव ने कहा कि लगता है लोगों की रूचि इसमें बहुत बढ़ने लगी है।

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