Tuesday, February 2, 2010

उंगली में अंगूठी यानी शादी का एहसास


अखिलेश के चेहरे पर मुस्कान और हाथ में चमचमाती अगूंठी यानी हो गई सगाई और होने वाली है शादी। शादी के अलावा ऐसा कोई रिश्ता शायद नहीं जिसकी पहचान हाथों की अंगूठी से हो।
हाल ही में शादी के बंधन में बंधे अखिलेश यूं तो अभी अपनी पत्नी से कोसों दूर हैं, लेकिन उनके दांए हाथ में सोने की अंगूठी उन्हें हर वक्त उनके नए सुनहरे रिश्ते की याद दिलाती है और उनका प्यार बढ़ सा जाता है। वे कहते हैं कि हाथ की यह अंगूठी उन्हें नए रिश्ते का सुखद एहसास कराती हैं और उन्हें पूरा यकीन है कि उनकी दुल्हनिया के हाथों में पड़ी अंगूठी भी उसे तड़पाती होगी।
अगर आपके हाथों में खामोश और आपके गृहस्थी के मूक गवाह वेडिंग अंगूठी की चमक फीकी पड़ गई हो तो साफ करा लें, क्योंकि आज 'वेडिंग रिंग डे' है। सालों से आपके हाथ में पड़े मजबूत बंधन की निशानी इस अंगूठी को लोग वक्त के साथ भूलने लग जाते हैं, लेकिन आज का यह दिन आपको मौका देता है कि आप उस अंगूठी को निकालें देखें और खो जाएं उन स्वप्निल यादों में जब आप एक से दो हुए थे।

कभी सोचा है शादी पर अंगूठी पहनाने की शुरूआत कैसी हुई?

शादी पर अंगूठी पहनाने की परंपरा बहुत पुरानी है और इसकी कहानी बेहद निराली है। ईसाइयों और यहूदियों में इसकी धार्मिक महत्ता है।
ऐतिहासिक तौर पर वेडिंग रिंग यूरोप से निकले। यूरोप में इनका महत्व कीमती वस्तुओं के लेनदेन से था न कि प्यार के एहसास से। एडवर्ड 6 की प्रार्थना पुस्तक के मुताबिक, ईसाइयों में 'इस अंगूठी को पहनाने के साथ मैं तुमसे शादी कर रहा हूं' के बाद कहा जाता है, 'ये सोना और चांदी मैं तुम्हें देता हूं' और इसके साथ ही वर को सोने और चांदी से भरा चमड़े का एक पर्स वधू को देना होता है।'
भारत में यह अंगूठी सगाई के मौके पर पहनाई जाती है, लेकिन विभिन्न परंपराओं में इसकी अलग-अलग भूमिका है। हिंदुओं में कुछ जगह शादी पर अंगूठी के आदान प्रदान के बदले पैर की उंगलियों में बिछिया पहनाई जाती है। हालांकि यह केवल महिलाएं ही पहनती हैं।
भारत के पूर्वी हिस्से और मुख्यत: बंगाल में शादी के समय लोहे का कड़ा पहनाया जाता है जिसे लोहा कहते हैं। अब इन लोहों को सोने और चांदी की शक्ल दिया जाने लगा है।

1 comment:

Udan Tashtari said...

अच्छा लगा जानना. अच्छा आलेख.