Tuesday, June 22, 2010

21वीं सदी में भी विधवाएं हैं उपेक्षा की शिकार


रमा देवी को समझ नहीं आता कि एक दिन जिस परिवार ने उन्हें पूरे प्यार और सम्मान से अपनाया था वही परिवार आज उन्हें मनहूस क्यों मानता है और शादी-ब्याह, मुंडन जैसे शुभ अवसरों पर उन्हें शामिल क्यों नहीं किया जाता।
पश्चिमी दिल्ली के एक गांव की 72 वर्षीय रमा देवी पति के लिए पति के निधन के सदमे से उबर पाना बहुत मुश्किल था और उनकी मुश्किलें उस वक्त और बढ़ गईं, जब उनका अपना परिवार उन्हें मनहूस मानने लगा। उपेक्षा की इस मार ने उनकी पीड़ा को कई गुना बढ़ा दिया।
शिक्षा के प्रसार और आधुनिकता की बयार के बावजूद 21वीं सदी में भी विधवाओं को अशुभ माना जाता है। लोग उन्हें न केवल शादी-ब्याह जैसे अवसरों पर ही दूर नहीं रखते हैं, बल्कि उन्हें परिवार पर बोझ मानते हैं।
हालांकि विधवाओं को भी संपत्ति में हिस्सा पाने का कानूनी हक है, लेकिन व्यवहार में ऐसा बहुत कम होता है और उन्हें संपत्ति के हक से बेदखल कर दिया जाता है। खासकर जब पति के भाइयों में जमीन या संपत्ति के लिए विवाद होता है तो विधवा के हक को नजरअंदाज कर दिया जाता है।
एक अनुमान के अनुसार देश में तीन करोड़ 30 लाख विधवाएं हैं। देश में हर चौथे परिवार में एक विधवा हैं और देश की इतनी बड़ी आबादी को अपनेपन के अभाव में घोर उपेक्षा में अपने जीवन के दिन काटने पड़ रहे हैं।
देश में विधवाओं खासकर वृद्ध विधवाओं को गरीबी, भूखमरी, खराब स्वास्थ्य देखभाल, ज्यादा शारीरिक श्रम जैसी समस्याओं से दो चार होना पड़ता है। शहरी एवं ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में करीब 45 प्रतिशत वृद्ध विधवाएं जटिल स्वास्थ्य समस्याओं से घिरी हैं।
विधवाओं में करीब आधी कम उम्र की विधवाएं हैं जो बालपन में ही अधिक उम्र के पुरूष से ब्याह दिए जाने के कारण वैध्वय का शिकार हो जाती हैं।
देश में भले ही ब्रिटिश काल में ही सती प्रथा समाप्त हो गई और विधवा पुनर्विवाह कानून भी बन गया, लेकिन हकीकत यह है कि कई सवर्ण जातियों में विधवाओं का पुनर्विवाह नहीं होता। उन्हें सादगी के नाम पर ताउम्र जीवन के रंगों से दूर रहना पड़ता है। सबसे दुर्भाग्य की बात तो यह है कि इन्हें इनके पति की मौत के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है।
कई परिवार विधवाओं को मोक्ष के नाम पर वृंदावन या बनारस की तंग गलियों में छोड़ आते हैं, लेकिन दरअसल ऐसा उनसे पिंड छुड़ाने के लिए किया जाता है। वहां उन्हें जीवन की जरूरतें पूरी करने के लिए भीख तक मांगना पड़ता है।
राष्ट्रीय महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष मोहिनी गिरी मानती हैं कि बाल विवाह की वजह से महिलाएं बड़ी संख्या में विधवा हो जाती हैं। कुछ पुरातन परंपराओं कारण विधवाओं का दूसरा विवाह नहीं किया जाता और उनसे पिंड छुड़ाने के लिए उन्हें किसी धार्मिक शहर में छोड़ दिया जाता है।
एक अनुमान के अनुसार वृंदावन में करीब 15 हजार विधवाएं हैं। इसी तरह बनारस में बहुत बड़ी संख्या में विधवाएं हैं। वहां उन्हें समुचित खाना पीना नहीं मिलता और कई बार उनका यौनशोषण होता है। कई महिलाओं को जीवन की जरूरतें पूरी करने के लिए लाचार होकर यौनधंधे में उतरना पड़ता है। विधवाओं की स्थिति पर दीपा मेहता की फिल्म 'वाटर' बहुत चर्चित रही।

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