Tuesday, June 1, 2010
अवसादरोधी दवाओं से गर्भपात का खतरा
दुनिया में अवसादरोधी दवाओं का इस्तेमाल बढ़ने के साथ गर्भपात का खतरा 68 प्रतिशत तक बढ़ गया है। एक नए अध्ययन में पता चला है कि गर्भावस्था के दौरान अवसादरोधी दवाओं का बहुत इस्तेमाल होता है और 3.7 प्रतिशत महिलाएं गर्भावस्था के पहले तीन महीनों के दौरान कभी न कभी इनका उपयोग करती हैं।
इलाज बंद करने पर दोबारा अवसादग्रस्त होने की संभावना रहती है और इससे मां व बच्चे को खतरा हो सकता है। पूर्व में हुए ज्यादातर अध्ययनों में गर्भावस्था के दौरान अवसादरोधी दवाओं के इस्तेमाल और गर्भपात के बीच संबंध पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है। कई अध्ययनों में तो बिल्कुल उलटे परिणाम आए हैं।
मोंट्रियल विश्वविद्यालय [यूएम] के शोधकर्ताओं ने क्यूबेक की ऐसी ही 5,214 महिलाओं पर अध्ययन किया जिनका गर्भावस्था के 20वें सप्ताह में गर्भपात हुआ। शोधकर्ताओं ने इतनी ही संख्या में ऐसी महिलाओं का भी अध्ययन किया, जिनमें गर्भपात नहीं हुआ।
जिन महिलाओं में गर्भपात हुआ उनमें से 284 [पांच प्रतिशत] ने गर्भावस्था के दौरान अवसादरोधी दवाएं ली थीं।
'सिलेक्टिव सीरोटोनिन रीअपटेक इंहिबिटर्स' [एसएसआरआई] खासकर पैरोक्जीटीन और वीनलाफैक्जीन अवसादरोधी दवाओं की प्रतिदिन अधिक मात्रा लेने से गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है।
अवसाद, चिंता, विकारों व कुछ व्यक्तित्व संबंधी विकारों के इलाज के लिए एसएसआरआई दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि चिकित्सकों को उनके पास पहले से अवसादरोधी दवाओं का इस्तेमाल कर रहीं या इनके इस्तेमाल के लिए सलाह लेने आने वाली महिलाओं को इन दवाओं के खतरों और फायदों के संबंध में स्पष्ट रूप से बता देना चाहिए।
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