Sunday, September 14, 2008

पढेंगे लिखेंगे बनेंगे ओझा!


रांची के गांव में विज्ञान पर अंधविश्वास भारी है। आधुनिकता के इस युग में झाड़-फूंक करने और कराने वालों की कमी नहीं है। झारखंड के लातेहार जिले में सिद्धि प्राप्त करने के लिए युवकों को जिस हालात से गुजरना पड़ता है, वैसे दृश्य देखकर ही रोंगटे खड़े हो जाएंगे। लेकिन सिद्धि के चक्कर में वे खुशी-खुशी इन कष्टों को झेल जाते हैं। उनमें पढ़- लिखकर भी ओझा बनने की ख्वाहिश है।

विज्ञान ने नई-नई ऊंचाइयों छू ली हैं। देश में विकास की रफ्तार पहले से कहीं तेज है। भले ही हम शनिवार को अंधविश्वास दिवस मना रहे हों, लेकिन लातेहार जिले का बभनहेरूआ गांव इससे वास्ता नहीं रखता। यहां के युवकों में पढ़ लिखकर आगे बढ़ने से अधिक सिद्धि प्राप्त कर ओझागुणी के क्षेत्र में आगे बढ़ने की ख्वाहिश है। सिद्धि प्राप्त करने के लिए युवाओं को तमाम कष्टों से गुजरना पड़ता है। पहले खुद को कोड़े से मारकर जख्मी करते हैं, उसके बाद वहां जुटे भगत [ओझा] के कोड़े की मार सहनी पड़ती है।

ओझा दिनेश भगत का कहना है कि बभनहेरूआ स्थित पीपल के पेड़ के नीचे झाड़-फूंक के कार्यक्रम करने से क्षेत्र में अकाल नहीं पड़ता।

बभनहेरूआ गांव के किनारे स्थित पीपल पेड़ के नीचे आदिवासी समूह के कुछ युवक अपने शरीर पर कोड़ा से वार करते हुए चीखते-चिल्लाते हुए दो बुजुर्ग लोगों के चरणों पर अचानक गिर जाते हैं।करमा भगत व कपिलदेव भगत बताते हैं कि वे लोग प्रतिवर्ष 15 व 21 दिनों में गांव व आसपास के युवकों को ओझागुणी व झाड़-फूंक की सिद्धि दिलाते हैं। इस दौरान उन्हें बंद कमरे में रखा जाता है। अगर वे इस बात को अपने परिवार के सदस्य को भी बता दें तो उनकी सिद्धि पूरी नहीं हो पाएगी।

इसी दौरान एक घर में बंद दर्जन भर युवक चीखते-चिल्लाते पीपल के पेड़ के नीचे पहुंचते हैं, जहां पूर्व से ही नगाड़ा बजा रहे लोग इकट्ठा हैं। वहां पहुंचने के बाद ओझागुणी का सिद्धि दिला रहे भगतों ने युवकों को कोड़ा से पीटना शुरू कर दिया।

झाड़-फूंक सीख रहे युवक से जब इस संबंध में बातचीत की गई तो वे बताते हैं कि 15 दिनों तक उन लोगों ने तपस्या की है। उन लोगों पर दैविक शक्ति सवार है। सांप, बिच्छू काटे हुए मरीजों की झाड़-फूंक तो करते ही हैं। साथ में हर प्रकार की बीमारी व जादू-टोना को भी झाड़-फूंक के माध्यम से ठीक करते हैं।

1 comment:

विशेष कुमार said...

बहुत ही दुखद स्थिति है। आजादी मिलने के बाद तुरंत पं जवाहरलाल नेहरू ने देश मेa वैज्ञानिक तरक्की पर जोर देने की बात की थी और आजतक हम अंधविश्वास से मुक्त नहीं हो सके हैं।